पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२३७

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गुप्त-निबन्धावली चिट्ठ और खत सेहरा बंधवानेके लिये सिर आगे बढ़ाता है । कौन जाने इनमेंसे किसके नसीबमें क्यो लिखा है और भविष्य क्या क्या दिखायेगा ! दो हजार वर्ष नहीं हुए इस देशका एक शासक कह गया है- "सैकड़ों राजा जिसे अपनी-अपनी समझकर चले गये, परन्तु वह किसीके भी साथ नहीं गई, ऐमी पृथिवीके पानेसे क्या राजाओंको अभिमान करना चाहिये ? अब तो लोग इसके अंशके अंशको पाकर भी अपनेको भूपति मानते हैं। ओहो ! जिसपर पश्चात्ताप करना चाहिये उसके लिये मूर्व उल्टा आनन्द करते हैं !' वही राजा और कहता है- “यह पृथिवी मट्टीका एक छोटा-सा ढेला है जो चारों तरफसे समुद्ररूपी पानीकी रेखासे घिरा हुआ है ! राजा लोग आपसमें लड़ भिड़कर इस छोटेसे ढलेके छोटे-छोटे अंशोंपर अपना अधिकार जमाकर राज्य करते हैं। ऐसे क्षुद्र और दरिद्री राजाओंको लोग दानी कहकर जांचने जाते हैं। ऐसे नीचोंसे धनकी आशा करनेवाले अधम पुरुषोंको धिक्कार है।" यह वह शासक था कि इस देशका चक्रवती अधीश्वर होनेपर भी एक दिन राजपाटको लात मारकर जङ्गलों और बनोंमें चला गया था। आज वही भारत एक ऐसे शासकका शासनकाल देख रहा है जो यहांका अधीश्वर नहीं है, कुछ नियत समयके लिये उसके हाथमें यहाँका शासनभार दिया गया था ; तो भी इतना मोहमें डूबा हुआ है कि स्वयं इस देशको त्यागकर भी इसे कुछ दिन और न त्यागनेका लोभ संवरण न कर सका। यह बङ्गविच्छेद बंगका विच्छेद नहीं है । बंगनिवासी इससे विच्छिन्न नहीं हुए, वरञ्च और युक्त हो गये। जिन्होंने गत १६ अक्तूबरका दृश्य देखा है, वह समझ सकते हैं कि बंगदेश या भारतवर्षमें नहीं, पृथिवी भरमें वह अपूर्व दृश्य था। आर्य सन्तान उस दिन अपने प्राचीन वेशमें विचरण करती थी। बंगभूमि ऋषि-मुनियोंके समयकी आर्यभूमि [ २२० ।