पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बङ्ग विच्छेद बनी हुई थी। किसी अपूर्व शक्तिने उसको उस दिन एक राखीसे बान्ध दिया था। बहुत कालके पश्चात् भारत सन्तानको होश हुआ कि भारतकी मट्टी वन्दनाके योग्य है। इसीसे वह एक स्वरसे “बन्दे मातरम्" कहकर चिल्ला उठे। बंगालके टुकड़े नहीं हुए, वरञ्च भारतके अन्यान्य टुकड़े भी बंग देशसे आकर चिमटे जाते हैं। ___ हां, एक बड़ेही पवित्र मेलको हमारे माई लार्ड विच्छिन्न किये जाते हैं। वह इस देशके राजा प्रजाका मेल है। स्वर्गीया विकोरिया महा- रानीके घोषणापत्र और शासनकालने इस देशकी प्रजाके जीमें यह बात जमादी थी कि अंग्रेज, प्रजाकी बात सुनकर और उसका मन रखकर शासन करना जानते हैं और वह रङ्गके नहीं, योग्यताके पक्षपाती हैं। केनिंग और रिपन आदि उदारहृदय शासकोंने अपने सुशासनसे इस भावकी पुष्टि की थी। इस समयके महाप्रभुने दिखा दिया कि वह पवित्र घोपणापत्र समय पड़ेकी चाल मात्र था। अंग्रेज अपने खयालके सामने किसीकी नहीं सुनते। विशेषकर दुर्बल भारतवासियोंकी चिल्लाहटका उनके जीमें कुछ भी वजन नहीं है। इससे आठ करोड़ बंगालियोंके एक स्वर होकर दिन रात महीनों रोने-गानेपर भी अंग्रेजी सरकारने कुछ न सुना। बंगालके दो टुकड़े कर डाले। उसी माई लार्डके हाथसे दो टुकड़े कराये, जिसके कहनेसे उसने केवल एक मिलिटरी मेम्बर रखना भी मंजूर नहीं किया और उसके लिये माई लाडको नौकरीसे अलग करना भी पसन्द किया । भारतवासियोंके जीमें यह बात जम गई कि अंग्रेजोंसे भक्तिभाव करना वृथा है, प्रार्थना करना वृथा है और उनके आगे रोना गाना वृथा है। दुर्बलकी वह नहीं सुनते। बंगविच्छेदसे हमारे महाप्रभु सरदस्त राजा प्रजामें यही भाव उत्पन्न करा चले हैं। किन्तु हाय ! इस समय इसपर महाप्रभुके देशमें कोई ध्यान देनेवाला तक नहीं है, महाप्रभु तो ध्यान देनेके योग्यही कहां ? [ २२१ ]