पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२५०

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माली साहबके नाम पर इस स्वाधीनता पानेके लोभसे भी मैं दक्षिण अफरीकावालोंकी स्वाधीनता छिनवानेका समर्थन कभी न करूंगा !” अतः आपसे बार बार यही विनय है कि अपने साधु पदकी मर्यादाका ग्बूब विचार रखिये। भारतवासियोंको अपनी दशाकी परवा नहीं। पर आपकी इज्जतका उन्हें बड़ा खयाल है। कहीं आप राजनीतिक पदक लोभसे अपने साधुपदको उम देहातीका गधा न बना बैठ ! अपने सिरका तो हमें कुछ गम नहीं, ग्वम न पड़ जाये तेरी तलवारमें । ( भारतमित्र ३० मार्च सन् १९०७ ) आशीर्वाद तीसरे पहरका समय था । दिन जल्दी जल्दी ढल रहा था और साम- नेसे संध्या फुर्तीके साथ पांव बढ़ाये चली आती थी। शर्मा महाराज बूटीकी धुनमें लगे हुए थे । सिल-बट्ट से भङ्ग रगड़ी जारही थी। मिर्च मसाला साफ हो रहा था। बादाम इलायचीके छिलके उतारे जाते थे। नागपुरी नारङ्गियां छील छील कर रस निकाला जाता था । इतनेमें देखा कि बादल उमड़ रहे हैं। चील नीचे उतर रही हैं ; तबीयत भुरभुरा उठी इधर भङ्ग उधर घटा, बहारमें बहार। इतनेमें वायुका बेग बढ़ा, चील अदृश्य हुई। अन्धेरा छाया । बून्द गिरने लगीं। साथही तड़तड़ धड़धड़ होने लगी, देखा ओले गिर रहे हैं । ओले थमे, कुछ वर्षा हुई । बूटी तैयार हुई “बम भोला" कहके शर्माजीने एक लोटा भर चढाई । ठीक उसी समय लालडिग्गीपर बड़े लाट मिन्टोंने बङ्गदेशके भूतपूर्व छोटे लाट उडबर्नकी मूर्ति खोली । ठीक एकही समय कलकत्तमें यह दो आवश्यक