आशीवाद
लिया है। इस देशके सब कष्टोंसे मुक्त करनेवालेने अपने पवित्र
शरीरको पहले जेलकी मिट्टीसे स्पर्श कराया। उसी प्रकार “पञ्जाबी" के
स्वामी लाला यशवन्त रायने जेलमें जाकर जेलकी प्रतिष्ठा बढ़ाई,
भारतवासियोंका सिर ऊंचा किया, अग्रवाल जातिका सिर ऊंचा
किया। उतना ही ऊंचा, जितना कभी स्वाधीनता और स्वराज्यके समय
अग्रवाल जातिका अग्रोहेमें था । उधर एडीटर मि० अथावलेने स्थानीय
ब्राह्मणोंका मस्तक ऊंचा किया जो उनके गुरु तिलकको अपने मस्तकका
तिलक समझते हैं। सुरेन्द्रनाथने बङ्गालकी जेलका और तिलकने
बम्बईकी जेलका मान बढ़ाया था। यशवन्त राय और अथावलेने
लाहोरको जेलको वही पद प्रदान किया। लाहोरी जेलकी भूमि पवित्र
हुई । उसकी धल देशके शुभचिन्तकोंकी आंखोंका अञ्जन हुई। जिन्हें इस
देशपर प्रम है, वह इन दो युवकोंकी स्वाधीनता और साधुतापर अभि-
मान कर मकते हैं।
जो जेल, चोर-डकनों. दुष्ट-हत्यारोंके लिये है जब उसमें सज्जन-
माधु, शिक्षित, स्वदेश और स्वजातिके शुभचिन्तकोंके चरण स्पर्श हों तो
ममझना चाहिये कि उस स्थानके दिन फिर । ईश्वरकी उसपर दया
दृष्टि हुई। साधुओंपर सङ्कट पड़नेसे शुभ दिन आते हैं। इससे सब
भारतवासी शोक सन्ताप भूलकर प्रार्थनाके लिये हाथ उठावं कि शीघ्र
वह दिन आवे कि जब एक भी भारतवासी चोरी, डकैती, दुष्टता,
व्यभिचार, हत्या, लूट-खसोट, जाल आदि दोषोंके लिये जेलमें न जाय ।
जाय तो देश और जातिकी प्रीति और शुभचिन्ताके लिये । दीनों और
पददलित निर्बलोंको सबलोंके अत्याचारसे बचानेके लिये, हाकिमोंको
उनकी भूलों और हार्दिक दुर्बलतासे सावधान करनेके लिये और
सरकारको सुमन्त्रणा देनेके लिये। यदि हमारे राजा और शासक हमारे
सत्य और स्पष्ट भाषण और हृदयकी स्वच्छताको भी दोष सममें और
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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२५४
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