पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२५६

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( भारतमित्र २५ नवम्बर सन् १९०५ ई० ) शाइस्ताखांका खत (१) फुलर साहबके नाम भाई फुलरजङ्ग ! दो सौ सवादो सौ सालके बाद तुमने फिर एक बार नवाबी || जमानेको ताजा किया है, इसके लिये मैं तुम्हारा शुक्रिया किस जुबानसे अदा करूं। मैंने तो समझा था कि हमलोगोंकी बदनाम नवाबी हुकूमतकी दुनिया फिर कभी इज्जत न होगी। उसपर अमलदरामद तो क्या उसका नाम भी अगर कोई लेगा तो गाली देनेके लिये। मेरा ही नहीं, मेरे बाद भी जो नवाव हुप उन सबका यही खयाल है। मगर अब देखता हूँ कि जमानेका इनकलाब एक बार फिरसे हमलोगोंके कारनामोंको ताजा करना चाहता है। ___अपनी हुकूमतके जमानेमें मैंने कितने ही काम अपनी मजसि किये और कितनेही लाचारीसे। उनमेंसे कितनोंहीके लिये मैं निहायत शरमिन्दा हूं, अपने ऊपर मुझे आप नफरत आती है। मैंने देखा कि उन कामोंका नतीजा बहुत खराब हुआ। हुकूमतक नशेमें उस वक्त बुरा भला कुछ न सोचा। मगर अंजाम जो कुछ हुआ, वह सारे जमानेने देख लिया । यानी हमारी कौमको बहुत जल्द हुकूमतसे छुट्टी मिल गई और जिस वादशाहका में नायव बनकर बङ्गालका नाजिम हुआ था, उसने मरनेसे पहले अपनी हुकूमतका जवाल अपनी आंखोंसे देखा । बङ्गालमें मेरे बाद फिर किसीको नाजिम नहीं होना पड़ा। ___ गर्जे के मैंने खूब गौर करके देखा बङ्गालेमें या हिन्दुस्तानमें नवाबी जमाना फिर होनेकी कुछ जरूरत नहीं है। इन दो सौ सालमें कितनी [ २३९ ]