पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२५८

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शाइस्ताखाका खत ऐसा कहनेपर तुम्हें गंवार नहीं कहा। उस वक्त तुम लोग क्या थे, जरा सुन डालो ! तुम कई तरहके फरङ्गी इस मुल्कमें अपने जहाजोंमें बैठकर आने लगे थे। बङ्गालमें वलन्देज, पुर्तगीज, फरासीसी और तुमलोगोंने कई मुकामोंमें अपनी कोठियां बनाई थीं और तिजारतके बहाने कितनी ही तरहकी शरारतं सोचा और किया करते थे। वह फरङ्गी चोरियां करते थे, डाके डालते थे, गांव जलाते थे ! जब हमलोगोंको यह मालूम हुआ कि तुम्हारी नीयत साफ नहीं है, तिजारतके बहानेसे तुम इस मुल्क र दखल कर बैठनेकी फिक्रमें हो, तब तुमलोगोंको यहांसे मारके भगाना पड़ा और सिर्फ बङ्गालहीसे नहीं, सार हिन्दुस्तानसे निकालनेका भी हमारे बादशाहने बन्दोवस्त किया था। जुल्मसे यह सुलूक तुम्हारे साथ नहीं किया गया, बल्कि तुम्हारी शरारतोंके सबबसे। इसके बाद १० साल तक तुम अपने पांवसे ग्वड़ न हो सके। यह कायदा है कि दूसरी कौमकी हुकूमतहीको लोग जुल्मसे भी बढ़कर जुल्म समझते हैं। इससे हिन्दू हमारी हुकूमतको उस जमानेमें पुरा समझते हों तो एक मामूली बात है। तो भी मैं तुम्हारे जाननेको हता हूं, कि हम मुसलमानोंने बहुत दफ हिन्दुओंके साथ इंसानियतका वर्ताव भी किया है। बहुत-सो बदनामियोंके साथ मेरी हुकूमतके वक्त- की एक नेकनामी बङ्गालेको तवारीखमें ऐसी मौजूद है, जिसकी नजीर तुम्हारी तवारीखमें कहीं भी न मिलेगी। मैंने बङ्गालेके दारुस्सलतनत डाकेमें एक रुपयेके ८ मन चावल बिकवाये थे। क्या तुममें वह जमाना फेर लादेनेकी ताकत है ? मैं समझता हूं कि अंग्रेजी हुकूमतमें यह वात नामुमकिन है। अंग्रेजीमें ऐसा न हुआ, न है और न हो सकता है। जहां तुम्हारी हुकूमत जाती है, वहां खाने-पीनेकी चीजोंको एकदम आग लग जाती है। क्योंकि तुम तो हमलोगोंकी तरह खाली हाकिम ही नहीं हो, साथ-साथ बकाल भी हो । उस अपने बकालपनकी हिमायत- [ २४१ ]