पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२५९

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गुप्त-निबन्धावली चिठे और खत के लियेही हमारे जमानेको बङ्गालमें खंचकर लाना चाहते हो । जो बादशाह भी है और बक्काल भी है, उसकी हुकूमतमें खाने-पीनेकी चीजें सस्ती कैसे हों ? मेरी हुकूमतका एक सबसे बड़ा इलजाम मैं खुद बताता हूं। अपने बादशाहके हुक्मसे मैंने बङ्गालके हिन्दुओंपर जिजिया लगाया था। पर वह तुम फरङ्गियोंपर भी लगाया था । तुम लोग चालाक थे, कुछ घोड़े और तोहफा-तहायफ देकर वच गये। हिन्दुओंके साथ झगड़ा हुआ। उनके दो चार मन्दिर टूटे और एक इज्जतदार रईस कैद हुआ । इसीके लिये मैं शरमिन्दा हूं और इसका बदला भी हाथों हाथ पाया और इसीका खौफ तुम अपने इलाकेके हिन्दुओंको दिलाते हो। वरना यह हिम्मत तो तुममें कहां कि मेरे जमानेकी तरह हिन्दुओंको हरवा- हथियार बांधने दो और आठ मनका गल्ला ग्याने दो। तुम लोगोंने जो महसूल इम मुल्कपर लगाये हैं, वह क्या कभी इस मुल्ककी खाने-पीनेकी चीजोंको सस्ता होने दंगे ? तुम्हारा नमकका महसूल जिजियेसे किस बातमें कम है ? भाई फुलरजङ्ग ! कितने हो इलजाम चाहे मुझपर हों, एक बार मैने इस मुल्ककी रैयतको जरूर खुश किया था। मगर तुमने हुकूमतकी बाग हाथमें लेते ही गुरखोंको अपने वहदेपर मुकर्रर किया है। बच्चोंके मुंहसे “बन्दयेमादरम्” सुन कर तुम जामेसे बाहर होते हो, इतनेपर भी तुम मेरी या किसी दूसरे नवाबकी हुकूमतसे अपनी हुकूमतको अच्छा समझते हो ! तुम्हें आफरी है ! तुमने बिगड़ कर कहा है कि तुम बङ्गालियोंको पांच सौ साल पीछे फेक दोगे। अगर ऐसा हो, तो भी बंगाली बुरे न रहेंगे। उस वक्त बंगालमें एक ऐसे राजाका राज था, जिसने हिन्दुओंके लिये मन्दिर और मुसलमानोंके लिये मसजिदें बनवाई थी और उस राजाके मर जानेपर हिन्दू उसकी लाशको जलाना और मुसलमान गाड़ना चाहते थे। वह [ २४२ ]