पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२६३

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गुप्त-निबन्धावली चिट्ठ और खत बेहतरीके लिये तुम्हें नहीं दिया था, बल्कि अपनी जिद पूरी कराने या अपना उल्लू सीधा करानेके लिये। मगर उसकी वह आरजू पूरी न हुई, उल्टी तुम्हें तकलीफ और खिफ्फत उठानी पड़ी । तुम सच जानो तुम्हारे ओहदेपर बैठनेके लिये तुमसे बढ़कर लायक और हकदार लोग कई मौजूद थे। मगर वह लोग थे जो अपनी अक्लसे काम लेते और इस बातपर खूब गौर करते कि सख्ती करके जब हमारे आला अफसरने शकस्त खाई है तो हमें उसमें फतह कैसे हासिल होगी। तुम्हें भी अगर इतना सोचनेकी मोहलत मिलती तो तुम चाहे इस ओहदेहीको कबूल न करते या उस रास्तेको तर्क करते, जिसपर तुम चलकर खराब हुए। देखो भाई ! जो गुजर गया है, उसे कोई लौटा नहीं सकता। बहकर दूर निकल गया हुआ नदीका पानी क्या कभी फिर लौटा है ? पांच सौ बरसका या मेरा दो सवादो सौ सालका जमाना फिर लौटा लेना तो बहुत बड़ी बात है, तुम अपनी नवाबीके बीते हुए दस महीनोंको भी लौटानेकी ताकत नहीं रखते। क्या तुम सन १६०६ ईस्वीको पीछे हटा कर १४०६ या १७०६ बना सकते हो ? नहीं ; भाई इतने वर्ष तो कहां, तुममें २० अगस्तको १६ बनानेकी भी ताकत नहीं है। जरा पांच सौ साल पहलेकी अपने मुल्ककी तारीखपर निगाह डालो। उस वक्त तुम्हारी कौम क्या थी ? अगर तुम किसी तरह उस जमानेतक पहुंच जाओ तो अपनी शकल पहचान न सको। दुनिया तारीक दिखाई देने लगे और तुम खौफसे आंख बन्द करलो। दुनियामें तुम्हें अपना कोई मातहत मुल्क नजर न आवे, बल्कि अपने ही मुल्कमें तुम्हें अपनेको बेगाना समझना पड़े। हिन्दमें मेरा जमाना लानेके लिये तुम्हें रेल -तार तोड़ने, दुखानी जहाज गारत करने, डाक उठवा देने, गैस बिजली वगैरहको जेहन्नमरसीद कर देनेकी जरूरत है। नहर पटवा देने और सड़क उठवा देनेकी जरूरत है। [ २४६ ]