पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२७७

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास इनायत, हम गरीब एडीटरों पर रहमकी नजर रहे। मुंशी साहब हंसकर चले गये। कुछ पुराने अखबार कोहेनूरके जारी होनेके बाद पञ्जाब और भारतवर्षके दूसरे प्रान्तोंमें उर्दू के कई एक अखबार निकले । कानपुरमें एक अखबार “शोलयेतूर" के नामसे निकलता था । एक और अखबारने "मतलयेनूर" नाम रखा था, यह अब उठ गये हैं। खास लाहौर में “पञ्जाबी अग्वबार" और "अंजमनेहिन्द" निकले थे । इनमेंसे पहला सप्ताहमें दो बार होकर समाप्त होगया। दूसरा कुछ दिन अच्छी तरह चलकर कोहेनूरके अण्डरमें आया और अन्तको बन्द होगया । “आफताब पञ्जाब" नामका एक पत्र लाहोरमें दीवान बूटा सिंहने निकाला। मप्ताहमें तीन वार तक हो चुका था। यह हर बातमें कोहेनूरकी नकल करना पसन्द करता था। दिल्लीमें "अशरफुल अखबार" बहुत पुराना है, जिसको बुझते हुए दियेकी-सी दशा है । ४४ सालका पुराना है । स्यालकोटका “विकोरिया" पेपर भी ४० सालका हो चुका । बम्बईक “कशफुल" अखबारकी भी इतनी ही उमर है । लखनऊका “कारनामा" भी बहुत पुराना पत्र है। वह गद्य होनेपर भी सदा पद्य ही बना रहता अर्थात तुकदार या मुफक्का भाषा लिखता है। इसी प्रकार मन्द्राजका “जरोदये रोजगार' जो कुछ कम पुराना है, एक बातको बराबर निवाह रहा है । कुदमी कविने फारसीमें मुहम्मद साहबकी तारीफों एक गजल लिखी थी। उसी गजलपर हर सप्ताह नया उर्दू मुखम्मस तय्यार होकर उक्त पत्रक आरम्भमें छपता है। और भी उर्दू के कई एक बहुत पुराने पत्र थे या हैं। उनके नाम याद नहीं। सारांश यह कि समय बदल गया, पर वह पुरानी चालके ऐसे मुरीद हैं कि जहाँसे चले थे, वहींके वहीं अड़े हुए गुमनामीके गढ़ में पड़े हुए हैं । एक "अवध अखबार" लखनऊ उर्दू का दैनिक पत्र है, जिसका ४५वां वर्ष [ २६० ]