पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२८

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पं० प्रतापनारायण मिश्र वह सब बात तो होने नहीं पाई और अब उसके होनेका कोई उपाय भी नहीं है। लाचार, जो कुछ मौजूद है, उसीसे काम लिया जाता है। वंश-परिचय अपने वंशका परिचय देते हुए पण्डित प्रतापनारायणजीने अपने वृद्ध प्रपितामह तकका नाम बताया है। उनके बड़े, उन्नाव जिलेके बजेगांवमें रहते थे। वहीं उनका जन्म आश्विन बदी ६ मोमवार संवन १६१३ को हुआ। उनके पिता पण्डित संकटादीन मातृ-पितृ-विहीन होकर थोड़ीमी उमरमें कानपुर आये थे। इससे पहले उनका कानपुरसे कुछ सम्बन्ध न था। उनके विषयमें इतना ही मालूम हुआ है कि वह एक प्रतिष्ठित ज्योतिषी थे। कानपुर जूट मीलके मैनेजर बीयर माहब उनके ज्योतिपके गुणोंपर मोहित हुए थे । एकवार बीयर माहबको तार मिला कि उनकी मेम विलायतमें बहुत बीमार है। माहब बहुत घबरा गये और मोचने लगे कि क्या करना चाहिये। उनक हिन्दुस्तानी क्लकोंने उनसे पण्डित संकटादीन मिश्रकी बात कही। माहबने मिश्रजीको बुलाया और अपनी मेमकी बीमारीकै विषयमें उनसे प्रश्न किया। मिश्रजीने थोड़ीही देर में उत्तर दिया कि आपकी मेम आपसे मिलनेके लिये बहुत जल्द आना चाहती है। साहबको मिश्रजीकी बातोंपर कुछ विश्वास न हुआ। उन्होंने समझा कि यह बात वाहियात है। पर दोही दिनमें जब मेम उनके मामने आ खड़ी हुई तो साहब बहुत चकराये। उनके आश्चर्यका कुछ ठिकाना न रहा और तबसे वह मिश्रजीका बहुत आदर करने लगे। शिक्षा प्रतापजीके पिता बहुत बालक प्रतापको अपने साथ कानपुर लाये । वह ज्योतिषी थे, इससे उन्होंने पुत्रको भी ज्योतिष पढ़ाना आरम्भ किया। पितासे प्रताप कुछ दिन शीघ्रबोध और मुहूर्तचिन्तामणि [ ११ ]