पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२८२

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उर्दू-अखबार मुंशी नवलकिशोर बहुत राजभक्त थे, इसीसे वह बहुधा हरेक काममें सरकारहीके तरफदार हुआ करते थे। देशकी उस कामसे चाहे हानि हो चाहे लाभ, अवध अखवारको सरकारी तरफदारोहीमें बड़ा होना पड़ता था । राजनीति और समाजनीति दो बात हिन्दुस्थानी अखबारों में प्रधान होती हैं । “अवध अग्वबार" दोनोंहीमें सदासे विचित्र रहा। वह राज- नीतिसे दूर भागता था, पर उलटी राजनीतिमें शामिल होजाता था। इमी प्रकार समाजनीतिसे भी हटता था, पर उलटी समाजनीतिका कितनीही बार तरफदार होजाता था। इन सब बातोंको दिखानेसे लाव बहुत बढ़ सकता है। इसीसे यहां उनका दिखाना उचित नहीं समझा गया। कोई और अवसर हुआ तो दिग्वावंगे। अवध अग्वबारकी इन सब कमजोरियोंपर उसका स्थानीय सहयोगी "अवधपञ्च” बराबर छेड़छाड़ करता था, किसी जमानेमें अवधपञ्चका एक भी ऐसा नम्बर नहीं निकलता था, जिसमें अवध अग्ववारसे कुछ न कुछ छेड़छाड़ न हो। अवधपञ्चने अवध अग्वबारका नाम ‘बनिया अखबार' रखा था। इसका कारण यही था कि 'अवध अखबार' सरकारी अफसरोंकी खुशामदमें बेतरह लिम हो जाता था। बहुत दिनसे अवधपञ्चने वह छेड़छाड़ बन्द कर दी है, विशेषकर मुंशी नवलकिशोर साहबके स्वर्गवासके पीछे वह उसका नाम भी नहीं लेता है। अवधपञ्चका भी अब पहली-सी उमंगका समय नहीं है। ____अवध अखबारपर सर्वसाधारणका प्रेम कभी नहीं हुआ। उसका कारण यही है कि सर्वसाधारणके उपकारकी कोई बात उक्त पत्रने नहीं की। वह सदा अमीरों और सरकारी अफसरोंकी खुशामद करता रहा, अमीर ही उसे खरीदते भी रहे । राजा लोगोंसे उसका मूल्य ५०) है, ताल्लुकदारों [ २६५ ]