पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३०५

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास 14 शुभचिन्ता न करें और उनकी उन्नति न चाहें। किन्तु उनकी हिमायत करते समय न्यायको हाथसे न जाने दें। ऐसा काम न कर जिससे मुसलमान हिन्दुओंसे भड़क और घृणा कर। अन्याय चाहे हिन्दूकी ओरसे हो चाहे मुसलमानकी, उसकी निन्दा करना चाहिये और न्याय- की सदा तरफदारी करना चाहिये। न्यायको दबाना और अन्यायको आश्रय देना शिक्षित लोगोंका काम नहीं। पैसाअखबारको हम कितनेही मौकों पर मुसलमानांकी बेजा तरफदारी और हिन्दुओंके साथ व्यर्थ घृणा प्रकाश करते देखते हैं। हिन्दू मुसलमानोंके कितने ही सीधे सादे मामलोंको वह बेफायदा रङ्गीन बनाया करता है। मुसलमानोंको कितने ही मामलोंमें कसूरवार होने पर भी दामनमें छिपाता है और हिन्दुओंको निर्दोष होने पर भी कितनीहो बार उल्टी सीधी सुना दिया करता है । यद्यपि उसके ऐसा करनेसे मुसलमानोंकी कुछ बेहतरी नहीं होती और हिन्दुओंको कुछ हानि भी नहीं । तथापि दोनों ओरके लोगोंके जी फटते हैं और उनका मेल जोल फिर कितने ही साल पीछे हट जाता है । यह वात हिन्दू मुसलमान दोनोंके लिये शुभ नहीं। अन्तमें एक बात हम अपने उद् सहयोगीसे कहकर आजका लेख समाप्त करते हैं । यह बात हमने एकबार जुबानी भी कही थी। वह यह कि कभी-कभी उसके लेबोंसे आत्मश्लाघा की बू आया करती है। विद्वानोंके लिये इस प्रकारको शेग्वी दोपको बात है। पैसा अग्वबारके आदर्श पर इस ममय कई पत्र चलते हैं। उनमें भी यह बू कुछ-कुछ पहुंची है। यह बहुत नुकमान पहुंचानेवाली और तरक्कीको रोकनेवाली आदत है । इस प्रकारकी आदत रखनेवालोंके अच्छे कामोंकी भी कभी तारीफ नहीं होती और लोग उनकी सफलताको शेखी समझने लगते हैं । हम अम्वबारवालोंको सदा यही चेष्टा करना चाहिये कि हृदयमें किमी प्रकारकी संकीर्णताको स्थान न मिले । उदारता सदा बढ़े। यदि [ २८८ ]