पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३१

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गुप्त-निबन्धावली चारत-चर्चा थी ; बड़े कमजोर थे। इससे लेटे-लेटे ही पढ़ा करते थे और लेटे-लेटे ही लिखा करते थे ; बैठकर लिखने-पढ़नकी शक्ति उनमें कम थी। उनके अक्षर एक विशेष सूरत-शकलके थे। पंक्तियों सीधी नहीं लिख सकते थे। टेढ़ी भी यहाँ तक लिखते थे कि दो-दो अढ़ाई-अढ़ाई अंगुलका फासिला पड़ता था और फिर उसके नीचे टेढ़ी-टेढ़ी पंक्तियाँ लिखे चले. जाते थे । उर्दू-हिन्दीमें ऐसा अधिक करते थे, अंग्रेजीमें कम । उदमें भी उनको अच्छे लेख लिखनेकी शक्ति थी। भारत-प्रतापमें उनके कई उई लेख छपे थे, जो एक दम उई ढंगपर थे । हिन्दी वह कैसी जानते थं यह बात यहाँ नहीं बताई जा मकती, वह आगे चलकर मालम होगी। उनकी हिन्दीहीको लेकर उनकी जीवनी लिखी जाती है। -भारतमित्र १९०७ ई० [ १४ ]