पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३२७

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास कानपुरसे एक तसवीरदार पत्र महीनेमें दोबार मियां रहमतुल्लह रादने निकाला था। उसमें तसवीर बहुत सुन्दर निकलती थीं। वह कोई दो . साल चला । अन्तमें उसकी पालिसी हिन्दू विद्वपकी ओर इतनी झुकी कि हिन्दुओंको गाली देते देते ही अन्त होगया। तसवीरके हिसाबसे वैसा पत्र उर्दू में आजतक न निकला । ___ उर्दू पत्रोमें बहुत कम ऐसे हैं, जो अपने पांवोंसे बड़े हो सकते हों और अपना खर्च आप चला सकते हों । पर हां, अब दो चार पत्र ऐसे हो गये हैं, जो अपने जोरपर चलते हैं और जिन्होंने दृमरोंकोभी अपने बल पर चलना सिखाया है । मासिकपत्रोंमें अभी केवल लाहोरका मखजनही अपनी आमदनीसे चलने लगा है। सुना है कि उसके लगभग एक हजार ग्राहक होगये हैं। पर अभी और मामिक पत्र हानि उठाकर चलते हैं । उनमेंसे ई एक बहुत जल्द अपना बोझ सम्हालनेके योग्य हो जायंगे। अभीतक उद्देवाले केवल हिन्दी आदि दृमरी हिन्दुस्थानी भाषाओंको हव्वा समझते थे। अब भी उनका वह भय मिट नहीं गया है, तथापि हिन्दी आदिकी ओर उनका कुछ-कुछ ध्यान हुआ है। उदृ-वालोंमें हिन्दीकी इतनी कम चर्चा है कि भारतमित्रमें उर्दू अखबारोंका लेख उन्होंने नहीं पढ़ा और पढ़ा भी तो केवल दो चारने, पर इतना हुआ कि उन्होंने उदमें लिख देनेका अनुरोध किया। वैसा किया गया और हमको इस बातके प्रकाशित करनेमें बड़ी प्रसन्नता होती है, उसका प्रभाव भी बहुत अच्छा हुआ। यहां हम अपना उद्दे पत्रोंके सम्बन्धका लेग्व समाप्त करते हैं। अगले समाहसे हिन्दी पत्रोंकी बात कहेंगे, जिनके लिये हमारा यह सारा श्रम है। भारतमित्र सन् १९०५ ई. । ३१० ]