पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३३४

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हिन्दी-अखबार जूतिओंसे पीटना भी है। यार लोगोंके ऐसे ही गुणोंपर मोहित होकर गोस्वामी तुलसीदासजी अपने रामचरितमानसमें इनकी बहुत कुछ वन्दना कर गये हैं। ___ हाकिमोंका ऐसा हलका वर्ताब देखकर निर्भीक हरिश्चन्द्रने आन- रेरी मजिष्ट्र टीका भार उसी दम अपनी गर्दनपरसे उतारकर फक दिया और फिर हाकिमोंसे मिलने-जुलने या उनकी दरबारदारी करनेका नाम न लिया। इसके बाद कविवचनसुधाका नाम सर्वसाधारणमें ग्ब बढ़ा। उसको बहुतसे अच्छे लेखक मिले थे । उसमेंसे कई एकके नाम हमें मालूम हुए हैं-पं० श्री राधाचरण गोस्वामी, बाबू गदाधर सिंह, बाबू काशीनाथ ग्वत्री, लाला श्रीनिवामदास, पं० बिहारीलाल चौबे, पं० सरयुप्रसाद, बाबू तोताराम वर्मा, मुंशी कमलाप्रसाद, पं० दामोदर शास्त्री, बाबू ऐश्वर्य्यनारायण सिंह, बाबा सुमेर सिंह, बाबा सन्तोषसिंह, बाबू गोकुलचन्द्र, वायू नवीनचन्द्र राय । पत्र कुछ देरसे निकलता था, कारण यह कि उस समय, समय पर पत्र निकालनेका अभ्यास लोगोंको नहीं पड़ा था । तथापि बाबू हरिश्चन्द्र- जीने समयपर निकालनेके लिये उक्त पत्र पं० चिन्तामणि राव घड़फलेके हवाले कर दिया । पत्र समय पर निकलने लगा । पर पीछे हरिश्चन्द्रजीने इसमें लिखना छोड़ दिया। इससे पत्रका प्राण निकल गया। इसके अन्तिम नम्बर हमने भी देखे हैं । सारहीनसे होते थे। कुछ दिन व्यास रामशंकर शर्मा भी इसके अवैतनिक सम्पादक थे । सन् १८८३ ईस्वीमें इसके अधःपतनका समय आ गया । लार्ड रिपनका जमाना था। इलवर्ट- बिलका आन्दोलन हुआ। राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्दने उसका विरोध करके स्वदेशवासियोंकी दृष्टिसे अपनेको गिराया था। कवि- वचनसुधाने राजा शिवप्रसादका साथ दिया। इससे वह भी गिरा। यहां तक कि सन् १८८५ ई० में वह पत्र बन्द होगया। उसी साल [ २१७ ]