पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३३५

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास बाबू हरिश्चन्द्रजीका देहान्त हुआ था । दूसरे हिन्दी पत्रोंने बाबू साहबके शोकमें महीनों तक काला बार्डर देकर लेख छापे, पर इस पत्रने अपने जन्मदाताके लिये एक कालम भी काला न किया। कविवचनसुधाका नमूना हिन्दी अखबारोंके विषयमें पहला लेग्य लिखते समय हमने दुःख प्रकाश किया था कि कविवचनसुधाका कोई अङ्क हमारे पास नहीं हैं, इससे उसके लेखोंका नमूना कुछ नहीं दिखा सकते । हर्षकी बात है कि उक्त लेग्वको पढ़कर जयपुरसे एक सज्जनने कृपापूर्वक उक्त पत्रके कुछ अङ्क भेज दिये है। हम उनकी इस कृपाके लिये बहुत कुछ कृतज्ञ हैं। इसमें कुछ अङ्क सन १८७५ और १८७६ ईस्वीके हैं। कुछ सन १८७८, ८० और ८५ के हैं। जिस समयके यह अङ्क हैं, उस समय “कविवचन" साप्ताहिक निकलता था। पिछले सात सालके अङ्क नहीं मिले। खैर जो अङ्क मिले हैं, उन्हींमेंसे कुछ-कुछ दिखाया जाता है। सन १८७५ ईस्वीके अङ्कोंके आरम्भके अङ्क रायल हाफशीटके दो पन्नोंमें हैं, अन्तके डिमाई पूरेशीटके दो-दो पन्नोंमें। इनमें कागज सफेद और अच्छा लगा हुआ है। यह काशीके लाइटप्रेसके छपे हुए हैं । सन १८७८ से १८८१ तकके अङ्क घटिया कागजपर छपे हुए हैं। तब उक्त कागज काशीके हरिप्रसाद प्रेसमें छपता था। उस समय हरिश्चन्द्रजी सम्पादक भी न थे, चिन्तामणि शर्माके हाथमें कागज था। सन् १८७५ के अङ्कोंमें लेखोंकी तरतीब यों है --एक प्रधान लेख, इसके बाद दो चार टिप्पणियां, अन्तमें दसपांच छोटी-छोटी खबर, दो दो चार चार लाइनसे बड़ी न होती थीं। उनका शीर्षक अंग्रेजीमें Summary of News और हिन्दीमें “समाचारावली" होता था। प्रायः हरेक विषयका एक- एक अंगरेजी हेडिङ्ग होता था। कोई-कोई लेख अंगरेजीका भी होता था। [ ३१८ ]