पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३४५

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास बातोंपर इसमें बहुत कुछ लिखा-पढ़ी होती है और उसका प्रभाव होता है। यह अखबार अब अपनी आयुके ३३ वर्ष पूरे करेगा। इतने दिनों- में इसने बहुत कुछ नामवरी प्राप्त की है। इसके प्रेससे हिन्दीकी खासी सेवा हुई है। इसके पुराने सम्पादक पण्डित केशवराम भट्ट हिन्दीके एक पुराने नामी लेखक हैं और बिहार हिन्दी-भाषाके लिये एक बड़ाही उत्साही प्रान्त है। इतने पर भी बिहारबन्धुकी इतनी हीन अवस्था हुई, यह बड़ेही खेदकी बात है। बिहार वाले हिन्दी अखबारोंको खरीदकर पढ़ना नहीं चाहते, यह इलजाम उनपर नहीं लग सकता। क्योंकि वह बहुत हिन्दी-अखबार खरीदते और पढ़ते हैं। इससे यही कहना पड़ता है कि बिहार में कोई ऐसा उत्साही आदमी नहीं है कि जो वहाँ एक अखबार चलानेके लिये रुपया दे सके और उसके लिये अच्छे सम्पादक आदि जुटा सके । बिहारवालोंसे हमारी अपील है कि वह लोग बिहार- बन्धुकी उन्नतिकी ओर ध्यान दं। एकबार सुना था कि कुछ सज्जन बिहारबन्धुको अच्छी दशामें लानेकी चेष्टा कर रहे हैं। पर उसके बाद फिर कुछ नहीं सुना। खैर, तब कुछ न हुआ तो अब होना चाहिये । बिहार में धीरे-धीरे शिक्षाकी उन्नति हो रही है। हिन्दी वहाँकी अदालती भाषा है। ऐसे प्रान्तमें एक अच्छा हिन्दी अखबार न होना कैसे दुःखकी बात है। यदि बिहार निवासी बिहारबन्धुको फिरसे ताजा कर लंगे तो उन्हें अभिमान करनेको जगह रहेगी कि हिन्दीमें उन्हींका अखबार सबसे पुराना है। सन १८७४ ई० में स्वर्गवासी लाला श्रीनिवासदासजीने दिल्लीसे “सदादर्श' नामका एक पत्र निकला था। वह साप्ताहिक निकलता था उसका मूल्य २॥) था। सन १८७६ ई० में उक्त पत्र कविवचन सुधामें जा मिला । सन् १८७६ ई० में “काशीसे काशीपत्रिका' निकली थी। इसके उद्योगी थे बाबू हरिश्चन्द्रजी और इसके निकालनेवाले बाबू बालेश्वर प्रसाद [ ३२८ ]