पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३४९

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास हिन्दीसे बहुत कुछ प्रेम था। जब तक वह जीवित रहे, मित्रविलास भी जीवित रहा। पर पत्र बहुत घाटेसे चलता था। इससे मालिकके देहान्तके पश्चात् उसे भी समाप्त होना पड़ा। हिन्दी समाचार रूपी वृक्षोंको उखाड़नेके लिये एक बार एक तूफान आया था। उसीने मित्रविलास जसे कितने ही अखबारोंको उड़ा दिया। इसका वर्णन कुछ देर पीछे आवेगा। उसी तूफानके झटकोंसे मित्रविलासकी जड़ खोखली हो गई थी। दो तीन साल बादही उसे गिरना पड़ा। पण्डित मुकुन्दरामजी पुरानी चालके हिन्दू थे। इसीसे मित्रविलास सनातनधर्मावलम्बी हिन्दुओंका पक्ष करता रहा। कितनीही वार उसमें अच्छे अच्छे लेख भी निकले हैं। पिछले दिनोंमें उसकी कदर भी खासी थी। पर हिन्दी अखबारोंके तीसरे दौरमें आकर उसकी बेकदरी होगई। उस दौरके अखबारोंकी बराबरी उससे किसी बातमें भी न होसकी, इससे हारना पड़ा । अन्तिम समयमें उसके सम्पादक तो पण्डित मुकुन्दरामके तीसरे पुत्र पण्डित कन्हैयालालजी थे और कन्हैयालालजीके दो बड़े भाई पण्डित गोविन्द सहायजी और गोपीनाथजी लेख आदिमें उनकी सहायता करते थे। "मित्र-विलास” पञ्जाबमें हिन्दीका बहुत प्रचार न कर सका। कारण यह कि हिन्दीरूपी बीजके लिये पञ्जाबकी भूमि ऊसरही नहीं, एक दम पत्थरकी है। भारतवर्षके दूसरे प्रान्तोंमें हिन्दीकी बहुत कुछ उन्नति होजाने पर भी वहां कुछ नहीं हुई है। तोभी कुछ पुरानी चालके लोगों पर उसका प्रभाव था और कुछ न कुछ हिन्दीकी चर्चा उसके दमसे थी। उसके मिट जानेसे वह भी न रही। जल्द आशा नहीं कि पञ्जाबसे कोई अच्छा तो क्या मित्रविलास जैसा भी पत्र निकले । इस समय पञ्जाबमें हिन्दी अखबारोंकी तरफसे एकदम सफाई