पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३५०

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हिन्दी-अखबार है। एक आध टूटीफ्टी पत्रिका वहाँसे भले ही निकलती हो। बाकी उर्दूही उर्दू का राज्य है। __ सन् १८७८ ई० में कलकत्तसे कई हिन्दी समाचारपत्र निकले । उनमेंसे पहला “भारतमित्र" है। दूसरा “सारसुधानिधि” और तीसरा "उचितवक्ता" था । दोनों अब नहीं हैं । भारतमित्रकी बात हम इसी वर्ष २ जनवरीके पत्रमें "अपनी बात" के शीर्ष कसे विस्तार पूर्वक सुना चुके हैं। उसमें भारतमित्रकी २६ सालको संक्षिप्त जीवनी लिखी गई है। पाठक उसे पढ़कर पसन्द कर चुके हैं। इससे "भारतमित्र" पर इस सिल- सिलेमें बहुत कुछ लिखनेकी जरूरत नहीं है । तथापि कुछ बान ऐसी हैं जिसको हम आगामी बार लिखेंगे। आजका लेख उचितवक्ता और सारसुधानिधिकी बात कह कर समाप्त करगे। सारसुधानिधि "भारतमित्र” पत्र पण्डित छोटूलाल मिश्र और पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्रने निकाला । पर पहले वर्षही पण्डित दुर्गाप्रसादजी उससे अलग हो गये । तब उन्होंने “सारसुधानिधि" निकाला, जिसके मालिक और एडीटर पण्डित सदानन्द मिश्र हुए। इसका मूल्य था वार्षिक ५॥ रुपये। साप्ताहिक पत्र था। रायल एक शीटके आठ पन्नोंपर निकलता था। उसका कागज अच्छा और चिकना होता था । अक्षर और छपाई- के हिसाबसे उस समयके पत्रों में वह लासानी था। भाषा संस्कृत मिश्रित हिन्दी होती थी। कुछ कठिन होती थी, पर साफ होती थी । लेख बहुत अच्छे और गम्भीर होते थे। राजनीति पर उसमें बहुत कुछ लिखा जाता था। दूसरे विषयों पर भी वह खासी अलोचना करता था। कितने- ही लेख उसमें बहुत लम्बे होते थे। खबरोंकी ओर ध्यान कम था । हिन्दी-समाचार पत्रों में वह उस समय खबरों का नहीं, लेखोंका कागज था। बाबू हरिश्चन्द्रजी उससे बड़ा प्यार रखते थे। उदयपुराधीश महाराणा [ ३३३ ]