पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३५३

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास इस देशमें अखबार खास खास आदमियोंके शौकपर चलते हैं । जब उनका शौक कम हो जाता है या वह नहीं रहते तो अखबार भी लीला संवरण कर जाते हैं। विलायत आदिमें ऐसा नहीं है। वहाँके अखबार किसी व्यक्ति विशेषके भरोसे नहीं हैं। वरञ्च उनका मजबूत टाफ होता है, पूरा प्रबन्ध होता है, किसी एडीटर या मनेजरके न रहनेसे वह बन्द नहीं हो सकते ; भारतवर्षमें अभी इस बातके होनेका दिन भारतमित्र वर्तमान हिन्दी समाचार पत्रोंमें “भारतमित्र" दूसरे दौरका पहला अखबार है। ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा संवत् १६३५ मुताबिक १७ मई सन् १८७८ ई० को भारतमित्रका जन्म हुआ। पण्डित छोटूलाल मिश्र और पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्र इसके जन्मदाता और आदि सम्पादक हैं। इसका पहला नम्बर आधे रायल शीटके दो पन्नोंपर छपा था । महीनेमें दो बार निकाला गया था। निवेदनमें आशा की गई थी कि यदि इसके पांच सौ ग्राहक हो जावं तो साप्ताहिक कर दिया जावेगा। संस्कृतमें इसका सिद्धान्त वाक्य था-"सत्यनिष्ठ लोगोंकी जय हो और उनके मनोरथ सिद्ध हों।” ___ पहले नम्बरके पहले लेखमें भारतमित्रने अपने जारी होनेके उद्देश्य लिखे हैं। उसमें दिग्वाया है कि जिस देश और जिस समाजमें उसी देश और उसी समाजकी भाषामें जब तक समाचार पत्रोंका प्रचार नहीं होता, तब तक उस देश और समाजकी उन्नति नहीं हो सकती। समाचारपत्र राजा और प्रजाके वीचमें वकील है। दोनोंकी खबर दोनोंको पहुंचा जाता है। जहाँ सभ्यता है, वहीं स्वाधीन समाचार पत्र हैं। जिन देशोंमें वाणिज्यकी उन्नति है, उन्हींमें स्वाधीन समाचार पत्रोंका आदर है। इसी प्रकारकी और कई बात कही थीं। इन्हीं कई एक [ ३३६ ]