गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास अग्रवाल वैश्य हैं और वह भी एक नामी व्यापारी हैं। कितनेही वर्ष इस पत्रके चलानेमें उन्होंने हजारों रुपये घाटा उठाया है । पर अब यह पत्र अपने खर्चसे चलता है। घाटेको सीमासे पार हो गया। इसकी चेष्टा यही है, राजनीति, समाजनोति और वाणिज्यनीति आदिकी जितनी बात इस समयके लोगोंक जाननेके योग्य हैं, उन्हें यथा साध्य सरल हिन्दीमें जनावे और हिन्दीके प्रचारको चेष्टा करे। इसकी आमदनीमें यदि कुछ बढ़ती हो, इसो पत्रके काममें खर्च हो। इसी पथ पर यह पत्र चलता है। सफलता ममयके हाथ है। दैनिक पत्र हिन्दीके दो तीन पुराने माताहिक पत्र और हैं, जिनकी बात कहकर हमें आगे बढ़ना चाहिये था, पर उनकी बात हम पीछे कहेंगे। आज हिन्दीके दैनिक पत्रोंका कुछ वर्णन करते हैं। इस समय हिन्दीमें केवल दो दैनिक पत्र हैं, उनमेंसे प्रथम अवध कालाकांकरका- ____“हिन्दोस्थान" है। इसके मालिक श्रीयुक्त राजा रामपालसिंहजी एक प्रतिष्ठित ताल्लुकेदार हैं। उन्होंने उक्त पत्रका जन्म इंगलेण्डमें कराया। अगस्त सन १८८३ ईस्वीसे जुलाई सन १८८५ ईस्वी तक उक्त पत्र इंग्लेण्डमें प्रका- शित होता रहा। राजा रामपालसिंहजी उस समय इंगलेण्डहीमें थे। कुछ दिन तक उनका पत्र अंगरेजी, हिन्दी-दो भाषाओंमें निकला । पीछे अंगरेजी, हिन्दी और उर्दु, तीन भाषाओंमें निकलता रहा। तब उक्त पत्र मासिक था। हिन्दी उद्देके लेख उसमें स्वयं राजा साहब लिखते थे और अंगरेजी, मि० जाज टेम्पल । टेम्पल साहबको राजा साहब पीछे हिन्दुस्थानमें लाये थे और कालाकांकरमें उनसे अंगरेजी हिन्दोस्थानका सम्पादन कराते थे। सन १८८४ ईस्वीके नवम्बर माससे विलायतहीमें [ ३४२ ]