पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३६१

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास सिंह हिन्दोस्थान पत्रके मनेजर और एडीटर हैं। पण्डित शीतल प्रसाद उपाध्याय ज्वाइण्ट एडीटर और ठाकुर रामप्रसाद सिंह और बाबू शिवनारायण सिंह असिष्टण्ट एडीटर। हिन्दोस्थानकी पालिसीमें दो तीन वार फेर बदल हुआ है। एक बातमें वह अपनी पुरानी चाल पर निस्सन्देह बराबर चल रहा है अर्थात् उसके स्वामी राजा रामपालसिंहजो हिन्दी भाषा और देवनागरी अक्षरोंके प्रेमी जैसे आदिमें थे, वैसे ही अब भी हैं। किन्तु दूसरी बात है, इस पत्रकी चाल सदा एक नहीं रही। राजनीतिमें इस पत्रकी जो चाल अब है, यदि आदिमें यही होती तो शायद इसका विलायतमें जन्मही न होता। जिस मतलबके लिये कांग्रसवालोंका "इण्डिया" पत्र इस समय लण्डनसे निकलता है, लगभग वही मतलब लण्डनमें हिन्दोस्थानके जारी होनेका था। उस समय इसमें हिन्दुस्थानकी हिमायतके लेख निकलते थे, चाहे वह बहुत जबरदस्त न हों। हिन्दु- स्थानमें आकर उक्त पत्र पूर्ण राजनीतिक बना। इधर यह जारी हुआ, उधर कांग्रस जारी हुई। दो तीन सालमें कांग्रसका इससे और इसका कांग्रससे पूरा परिचय हो गया। मन १८६८ ईस्वीसे लेकर चार पांच साल तक यह कांग्रसका बड़ा तरफदार रहा। इसके मालिक राजा रामपालसिंहजी पश्चिमोत्तर प्रदेशमें कांग्रसके एक प्रधान पुरुष समझे जाते थे। कांग्रमको उन्होंने अच्छा चन्दा दिया था और उसके वार्षिकोत्सवोंमें जाया करते थे। उन दिनों हिन्दी समाचार पत्रोंमें कांग्रसका प्रधान तरफदार यही पत्र था, इसीका जोर भी उन दिनों अधिक था। सरकारी अफसरोंकी बेजा कारवाइयोंकी इसमें खूब तीव्र आलोचना होती थी। राजनीति सम्बन्धी गद्यहीमें नहीं पद्यमें भी इसमें अच्छे-अच्छे लेख निकलते थे। उनमेंसे पण्डित प्रताप नारायण मिश्रके पद्य लेख बहुतही सुन्दर हुए थे। सन् १८८६ ईस्वीमें मि० [ ३४४ ]