पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३६४

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हिन्दी-अखबार समय लाहोरके पुराने उद्दे पत्र “कोहेनूर" से था। लाहोरसे हम भी मण्डलमें शरीक हुए थे। मालवीयजीसे सामान होने पर उन्होंने आज्ञा को कि आपको “हिन्दोस्थान" पत्रमें हमारे साथ काम करना चाहिये । कानपुरसे पण्डित प्रतापनारायणजी मिश्रको भी हम बुलाते हैं। उनसे विनय की गई कि यहां हिन्दीही नहीं आती, आपके साथ काम कैसे करंगे ? उन्होंने कहा कुछ परवा नहीं, आप शामिल तो हृजिये। ___ अन्तको उनका अनुरोध पालन करना पड़ा। उसी वपके अन्तिम- भागमें उक्त पत्रके प्राफमें शामिल हुए। पण्डित प्रतापनारायणजी कुछ पहले आचुके थे। उस समय वर्षाकालका आरम्भ था। ____ "हिन्दोस्थान” के ग्राफमें उस समय अच्छे अच्छे लोग एकत्र होगये थे। वसा जमाव आजतक किमो हिन्दीपत्रके ट्राफमें नहीं हुआ। मालवीयजी सम्पादक थे। बाबू शशिभूपण चटजी बी० ए०, पण्डित प्रतापनारायण मिश्र, बालमुकुन्द गुप्त तथा दो तीन और भी लोग उक्त पत्रकी सम्पादकमण्डलीमें शामिल थे। मालवीयजीके जीमें पत्रकी उन्नतिके विषयमें बड़े बड़े ऊंचे विचार थे। पर कुछ दिन पीछे वह वकालतकी परीक्षाकी तय्यारी करने लगे। जल्दही वह “हिन्दोस्थान से सम्बन्ध छोड़ने पर विवश हुए। उनके अलग होने पर बाबू शशिभूषणजी पत्रके सम्पादनमें अधिक परिश्रम करने लगे। कोई एक माल तक उनका साथ रहा । पीछे वह भी अलग हो गये। कुछ दिन पीछे पण्डित प्रतापनारायण मिश्र भी अलग होगये। तब पण्डित शीतलप्रसादजी बुलाये गये थे। दो सालसे कमके भीतर ही यह सब उलटा-पलटी होगई । अन्तमें पण्डित शीतलप्रसादजीको छोड़कर हमें भी अलग होना पड़ा। उक्त पण्डितजी अब तक बने हुए हैं। सच तो यह है कि उनकी भांति "हिन्दोस्थान" आफिसमें जमकर रहनेका सौभाग्य और किसीको प्राप्त नहीं हुआ। कालाकांकर रहनेके योग्य स्थान है। जो लोग वहां रहते हैं