पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३६५

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास और वहांके रहनेके आनन्दको समझ सकते हैं, वह सचमुच भाग्यवान हैं। कालाकांकर एक बहुत ही छोटासा गांव है। उसकी जनसंख्या एक हजारसे भी कम है। प्रयागसे १५ कोस पश्चिमकी तरफ गङ्गा-तटपर है। ईष्टइण्डियन रेलवेके सिराथू स्टेशनसे वह कोई पांच कोस है । मार्गमें कच्ची सड़क है, उसपर इक्का चल सकता है। उक्त स्थान गङ्गाजीके इस पार है, इससे जाते और आते नाव द्वारा गंगासे पार होना पड़ता है। गङ्गा इस गांवको प्रायः तीन तरफसे घेरे हुए है। गांवके चारों ओर कई कोसका बन है। उसमें ढाक और कई प्रकारके जंगली पेड़ ही अधिक हैं, तथापि बड़ा रमणीय है। गांवके आसपास एक नहर है जो बनमेंसे होकर निकली है। उसके किनारे खूब ऊंचे हैं। उनपर बेर आदिके जंगली पेड़ खड़े हुए हैं। बरसातमें जब गङ्गाजीका जल खूब बढ़ता है तो यह नहर भर जाती है। उस समय कालाकांकरकी शोभा देखनेके योग्य होती है। वह गंगा और नहरके बीचमें एक छोटासा टापू बन जाता है। बनमें रास्तोंपर इस नहरके कई एक छोटे- छोटे पुल हैं। एक छोटासा नाला इस नहरमेंसे निकलकर कालाकांकरसे बाहर कई मील जंगलमें बहा चला जाता है। नहर भर जानेपर दो दिन तक यह नाला खूब जोरसे बहता है। नहरका पानी पांच चार दिनहीमें सूख जाता है। क्योंकि कालेकॉकरकी भूमि गंगातटकी ओर एक दम रेतली और बाकी भूड मटियाली है। पानीको गिरतेही पी जाती है। कितनेही जोरकी वर्षा क्यों न हो, वहाँ कीचड़ नहीं होता। इधर वर्षा थमी और उधर भूमिने सब जल सोखा। इसीसे वहाँ वर्षा- कालमें भी मच्छर आदि बहुत कम होते हैं। वर्षा वहाँ बहुतही सुखकर प्रतीत होती है। मट्टी नम होनेके कारण कालाकांकरके आसपासकी भूमिमें नाले भी बहुत हैं। यह बरसाती पानीसे कटकर बन जाते हैं। [ ३४८ !