पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३८०

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हिन्दी-अखबार बाबू रामस्वरूप नौकरी छोड़के चले गये। इसके पश्चात् जो दरबार स्कूलका हेडमाष्टर तथा मारवाड़ राज्य के शिक्षाविभागका सुपरिण्टेण्डष्ट होता रहा, वही मारवाड़ गजटका भी प्रबन्धका होता रहा। दरवारी आज्ञाओंके सिवा महकमे खाससे जो बात लिम्बनेके लिये आज्ञा होती, वह पिछले पन्ने पर लिख दी जाती। सन १८८४ ई० में जब रायबहादुर मुंशी हरदयालसिंह साहब मारवाड़ राज्यके सेक्रेटरी और मुनाहिब आला हुए तो उन्होंने मारवाड़ गजटको महकमे खासके अधीन करके बहुत कुछ उन्नति दी और उसे गवर्नमेण्ट गजटका नमूना बना दिया। हिन्दी क लममें हिन्दी ही रही. उदू कालममें अंगरेजी दाखिल हुः। नबतक पत्थरके छापंसे काम चलता था। उस समय अंगरेजी और हिन्दी टाइप मंगाया गया। कई साल तक मारवाड गजट इतनी उत्तमतासे निकला कि उसके कुछ लम्ब अगरेजी अखबारों में भी नकल होने लगे और कभी-कभी अवध अख- बारमें भी तरजमा होकर छपने लगे। सकटरीके आफिमके हेड क्लर्क बाबू हरिश्चन्द्र प्रबन्धकत्ता थे। ___ सन् १८६४ ई० में मुशी हरदयालसिंहजीका स्वर्गवास हो गया। तव रावबहादुर पण्डित सुखदेवप्रसाद माहब मीनियर मेम्बर महकमे खासके चार्जमें मारवाड़ गजट चला गया। उक्त पण्डित साहबके बहनोई पण्डित निरञ्जननाथ गजटके प्रबन्धकर्ता हैं। यह भी योग्य और अङ्गरेजी पढ़े आदमी हैं । पर रियासतोंमें अखबारोंको आजादी नहीं । इसीसे अपनी तरफसे कुछ नहीं लिख सकत। जब कभो जसा कुछ लेग्ब उन्हें एडीटोरियल कालमके लिये दरबारसे मिल जाता है उसीको छाप देते हैं। अब एक कालममें उर्दू और एकमें हिन्दी नहीं रहती। पहला पृष्ठ अङ्गरेजीमें रहता है और शेष तान पृष्ठ हिन्दीके होते हैं। राज्यके हाकिमों और महकमोंको गजट बेदाम दिया जाता है और बाहरो खरोदारोंसे मूल्य लिया जाता है ।