पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३८२

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हिन्दी-अखबार दूसरी कठिनाई देशी रियासतोंमें यह है कि यदि साधारण प्रजामेंसे भी कोई प्रस या अखबार जारी करना चाहे तो उसे आज्ञा नहीं मिलती, बहुत तरहके सन्देह किये जाते हैं। जो लोग अखबार या प्रस जारी करना चाहते हैं उन बेचारोंकी कभी यह इच्छा नहीं होती कि वह ऐसे काम कर जिनसे उनपर सन्देह किया जाय। तथापि कोई उनकी इम इच्छाकी ओर ध्यान नहीं देते। भगवान जाने कब तक देशी रज- वाड़ोंकी यह दशा रहेगी। इम समय मारवाड़ गजट सुपर रायल साईजकी एक शीटके दो पन्नों पर निकलता है। कागज छपाई आदि खासी होती है। उनका वार्षिक मूल्य ४) है । पत्रके ललाट पर जोधपुर रियासतका राजचिह्न बना हुआ है। रियासती अखबार देशी रियासतोंसे हिन्दीके कई एक अखबार निकलते हैं, उनमेंसे एककी बात गत बार कही गई, वह प्रायः सबके सब उद और हिन्दीमें निकले थे। खालिस हिन्दीमें एकके सिवा और कोई नहीं निकला । इसका कारण यह था कि भारतवर्षमें हिन्दीसे पहले उर्दके अखबार ही निकले हैं। इससे रियासती अखबार भी उर्दू हीमें निकले । पर रियासतोंकी प्रजामें उर्दू जाननेवाले लोग बहुत अल्प हैं, इसीसे उर्दू के साथ-साथ एक कालम हिन्दी भी रखना पड़ा । अर्थात् उर्दू का कालम रियासतके अहलकारोंके लिये और हिन्दीका प्रजाके लिये हुआ । उन्नति दोनोंकी ही कुछ नहीं हुई । खालिस हिन्दीमें मेवाड़की राजधानी उदयपुरसे सजनकीर्ति-सुधाकर निकला। यह पत्र बड़े उत्साहसे निकाला गया था और हिन्दीवालोंने वहुत कुछ आशाएँ भी की थीं। कारण यह कि उस समय हिन्दीके [ ३६५ ।