पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३९५

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास मन्नालाल और कन्हैयालालका नाम लिखा है, पर हमने जहाँ तक सुना लज्जारामजीके बाद उसका कोई ऐसा सम्पादक नहीं हुआ, जिसे वास्तवमें सम्पादक कहा जाय । भारतभ्राता रीवा राज्यसे सन १८८७ ईस्वीमें "भारतभ्राता" नामका एक साप्ता- हिक पत्र निकला था। आकार प्रकार भारतजीवनकासा था । चार पृष्ठ थे। राज्यके कमाण्डर इनचीफ महाराजकुमार लाल बलदेवसिंह बड़े विद्यानुरागी थे। उन्हींके उद्योगसे वह निकला था, वही इसके प्रबन्ध- कर्ता थे। अखबार रियासतका नहीं था, स्वतन्त्र था और रियासतसे निकलनेपर भी राजनीति सम्बन्धी लेख उसमें होते थे। पत्र खासा था , एक हिन्दी पत्र कहलानेक योग्य था। पहले कालाकांकरका हिन्दोस्थान भी उसी आकारमें निकला था। उसीकी देखादेखी उक्त पत्र निकला था। कुछ-कुछ ढङ्ग भी उसका “हिन्दोस्थान"हीसा था । इसके सम्पादकोंके नाम ठीक तौरसे जाननेका हमें अवसर नहीं मिला। एकका नाम विदित है कि वह रीवा स्कूलके एक शिक्षक थे, उनका नाम बाबू भगवानसिंह था। करीब चार साल हुए उक्त पत्र बन्द हो गया। बन्द होनेके दिनोंमें उसकी दशा भी बहुत गिरी हुई थी। बन्द होनेका कारण स्पष्ट विदित नहीं हुआ था। तथापि यही मालूम हुआ कि रियासतमें एक वैसे कागजका जारी रहना रियासतक कुछ उच्च कर्म- चारियोंको पसन्द न था । इस पत्रके बन्द होनेके थोड़ही दिन बाद लाल बलदेवसिंहजीका स्वर्गवास हो गया। अव रीवासे वैसा पत्र निकलनेकी कुछ आशा नहीं है। अफसोस रियासती अखबारोंकी जहां-तहां ऐसीही गति है। भारतभ्राताका वार्षिक मूल्य २) साल था । गवालियर गजट गवालियर राज्यका “गवालियर गजट" इतना पुराना अखबार [ ३७८ ]