पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३९६

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हिन्दी-अखबार है कि प्रचलित हिन्दी पत्रोंमें उसकी उमरका कोई नहीं है। किन्तु गुमनाम भी इतना है कि अधिकांश हिन्दी जाननेवाले उसका नाम तक नहीं जानते। यह पत्र जबसे निकला, तबसे बराबर जारी है। यदि गदरके दिनोंमें कुछ दिन बन्द रहा हो तो रहा हो । नहीं तो बराबर नियत समय पर निकलता रहा है। ५४ सालसे उक्त पत्र जारी है। इसके आदिके दो तीन सालके अङ्क नहीं मिलते, इससे इसकी जन्म तिथि ठीक विदित न हो सकी। यह पत्र जन्मकालसे एक कालम हिन्दी और एक कालम उर्दूमें बराबर निकालता आया है। जिस समय स्वर्गीय महाराज जयाजी राव नाबालिग थे, उस समय राज्यकार्यका सब भार रावराजा दिनकरराव राजवाड़े दीवान पर था। वह बड़े बुद्धिमान और नीतिनिपुण पुरुष थे। गदरमें विपद्ग्रस्थ अंगरेजोंकी सहायता भी उन्होंने की और गवालियर राज्यकी रक्षा भी । आपहीकी सलाहसे महाराज जयाजी विद्रोहियोंसे बचकर आगरे चले गये । इसीसे गवालियर में विद्रोहियोंके हुल्लड़ मचाने पर भी उनका जोर न बंध सका। ____ भारतवर्षमें उस समय नई रोशनी फैलने लगी थी। अखबारोंकी भी चर्चा फैली। हिन्दी भाषाके जो एक दो पत्र उस समय निकलते थे, उनका बड़ा आदर था। उन्नतिप्रिय दिनकर रावने महाराजकी सलाहसे गवालियरसे एक अखबार निकालना चाहा । हिन्दी भाषामें अखबार लिखनेवालोंकी उस समय बड़ी कमी थी। पत्र सम्पादनके लिये एक योग्य सम्पादककी जरूरत पड़ी । एक अंगरेज सजनकी कृपासे एक योग्य सम्पादक भी मिल गया। नाम था मुंशी लछमनदास । अखबार निकलनेसे दो तीन साल पहले मुंशीजीने गवालियरमें आकर एक प्रेस खोला, उसका नाम रखा-आलीजाह दरबार प्रेस । उक्त प्रेसमें उस समय दो लीथो और एक टाइपकी कल थी ।मुंशीजीने इस योग्यतासे [ ३७: ]