पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४००

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हिन्दी-अखबार लिखी हुई भाषा कम होती है, तथापि जो नमूना हम नीचे देते हैं, उसके विषयमें हमारा अनुमान है कि उसकी भापा सम्पादककी भाषा है । “गत सप्ताहमें गर्मीका बड़ा जोर रहा। कभी-कभी रातको सर्दी भी अधिक हो जाती थी। बुधवार २४ मईको पूर्व श्रीमती महारानी विकोरियाका स्मारकदिन होनेके कारण प्रेसमें छुट्टी रही। इस वजहसे "जयाजीप्रताप" आज बृहस्पतिवारको प्रकाशित हुआ।" । कच्ची होने पर भी यह हिन्दी हिन्दीके ढंगकी है। आशा होती है कि अब देवनागरी अक्षरों के प्रसादसे अच्छी हिन्दी भी गवालियर राज्यमें फैलेगी। बहुत कालसे नागरी अक्षरोंका प्रचार रहने पर भी रजवाड़ोंमें शुद्ध और सरल हिन्दी नहीं फैली है । अभीतक वहां पुराने जमानेकी खूसट उर्दू उसी प्रकार जारी है, जैसे अंगरेजी सरकारके उर्दू दफ्तरोंमें। इसका कारण यह है कि अधिकतर रियासतोंमें हिन्दीका प्रचार करनेवाले कायस्थ सज्जन हुए हैं जो फारसी उर्दू पढ़े हुए होते थे और हिन्दी केवल अक्षर मात्र जानते थे। इसीसे रियासतोंमें हिन्दीकी उन्नति नहीं हुई और न शुद्धतापूर्वक नागरी अक्षरोंसे काम लेनेकी रोति पड़ी। ___ कायस्थों पर जहां यह इलजाम है कि वह उर्दू के बड़े प्रेमी हैं, वहां यह बात भी हिन्दी हितैषियोंके लक्ष्यके योग्य है कि जोधपुर, गवालियर आदिके पुराने उर्दू-हिन्दी मिश्रित अखबार उन्होंके निकाले निकले। इसीसे हिन्दी पर भी उनका कुछ न कुछ एहसान है। उसके लिये हिन्दी उनका शुक्रिया अदा कर सकती है। इसमें कुछ शक नहीं कि वह लोग उर्दूकी भांति हिन्दीके प्रेमी होते तो हिन्दीका बहुत कुछ भला कर सकते। जोधपुरके मुंशी देवीप्रसाद महोदयका ध्यान अब हिन्दीकी ओर अधिक हुआ है। इन कई एक सालमें उन्होंने हिन्दीकी अच्छी सेवा की है और बहुत कुछ करनेका इरादा रखते हैं । आशा है कि इस ढलती उमरमें [ ३८३ ]