पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४०४

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हिन्दी-अखबार कोई समाचार जयपुर नगर या जयपुर राज्यका उसमें नहीं है । गजटका मूल्य बाहरवालोंसे अगाऊ वार्षिक १५॥) और पीछे देनेसे २०) है। शहर- वालोंसे कुछ कम है। पर पढ़ा न गया कि कितना कम है। जयपुरमें प्रेसको स्वाधीनता नहीं है, इससे वहां कोई प्रेस नहीं खोल सकता। बड़ी मुश्किलसे बालचन्द्र नामका एक प्रेस खोला गया है, पर वह पराधीन है। कोई अखबार उसमें नहीं छप सकता। पोलि- टिकल चर्चासे जयपुर दरबार बहुत घबराते हैं। इससे कोई आदमी जयपुरमें स्वाधीन समाचार-पत्र नहीं निकाल सकता । स्वर्गीय बाबू कान्तिचन्द्र बड़े राजनीतिविशारद होने पर भी अखबारोंके शत्रु थे। किसी आदमीको स्वतन्त्रतासे बोलनेकी मजाल न थी। वह समय अब चला गया है, तथापि जयपुरके हाकिम लोग अब भी स्वतन्त्रताको पसन्द नहीं करते। पुरानी संकीर्णताको अपने साथ घसीट रहे हैं। जयपुर दरबार चाहे तो “जयपुर गजट” अब भी उन्नत हो सकता है । वहां अच्छे अच्छे लेखकोंका अच्छा समागम है। शेक्सपियरके कई एक नाटकोंके अनुवादकर्ता पुरोहित गोपीनाथ एम० ए०, पं० बदरीना- रायणजी वी० ए०, मिस्टर जैन वैद्य, पं० चन्द्रधर शर्मा बी० ए०, पं० गिरिजाप्रसाद द्विवेदी, शास्त्री पण्डित बालचन्द्र, ज्योतिपी शिवनन्दन शास्त्री, पण्डित रामनिवास, पं० सूर्यनारायण एम० ए०, बाबू अर्जुन लाल बी० ए० आदि कितनेही हिन्दीके सुलेखक और विद्वान पुरुष जयपुर राज्यमें मौजूद हैं। इन सब सज्जनोंके रहते भी “जयपुर गजट" इतना रद्दी निकलता है कि जिसे कोई लिखा-पढ़ा आदमी छूता तक नहीं। वह खाली पन्सारियोंकी पुड़ियोंके काम आता है। क्या इस लेख पर किसी ऐसे सज्जनकी दृष्टि पड़ेगी जो इसकी बात जयपुर दर- बारके कानोंतक पहुंचा सके। क्या हम आशा कर सकते हैं कि जयपुर दरबार इस पर ध्यान देकर अपने राज्यके गजटकी दशा सुधारें और [ ३८७ ]