पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४२४

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हिन्दी-अखबार मंगवाई थी। बाबू सुरेन्द्रनाथने अपने पत्र “बङ्गाली में इसकी निन्दा की थी और दिखाया था कि अदालतमें ठाकुरजीका मंगवाया जाना उचित नहीं हुआ। सुरेन्द्र बाबूका ऐसा लिखना अदालतकी हतकइज्जत समझा गया। उन पर समन जारी हुआ और २४ घण्टेके भीतर उनका मुकदमा चीफ जष्टिस, जष्टिस नारिस, मेकडालन, कनिंघम और मित्रके सामन पेश हुआ। इसमें सुरेन्द्र बाबूको दो महीनेकी दीवानी जेलकी सजा हुई। १० मईके भारतमित्रमें इस पर पांच कालमका लेख है। इस पर भी उसे सन्तोष नहीं हुआ, इससे क्रोडपत्र निकाल कर चार कालमका लेख और लिखा। यह वही मुकद्दमा है, जिसमें अदालतके अनुकूल गवाही देनेके लिये काशीके एक महामहोपाध्याय भी दौड़े थे, जिनके एक नये व्यवस्थापत्र पर हस्ताक्षर करनेकी बात हम दो सप्ताह पहले लिख चुके हैं। जरूरी खबरोंके लिये भारतमित्रमें क्रोडपत्र समय समय पर बराबर निकला करते थे। भारतमित्रके सन् १८८३ के अटोंमें इलबर्ट बिल और सुरेन्द्रनाथकी बात महीनों चली है। राजा शिवप्रसाद इलबर्ट बिलके विरोधी हुए थे, इससे उनको चर्चा बहुत कुछ चली थी। इस प्रकार सुरेन्द्रनाथकी जेल पर भी काशीका कविवचनसुधा कुछ अनुचित बात कहता था, इससे उसके विषयमें भी बहुत कुछ लिखा पढ़ी हुई है। राजा शिव- प्रसाद और वह एक ही जगहके थे। इसीसे शायद दोनों मिलकर खदेशियोंका विरोध करते थे। नया प्रबन्ध जारी होनेके दिनसे ही भारतमित्रके प्रबन्धमें जल्द जल्द परिवर्तन होता था, तथापि पण्डित छोटूलालजी मिश्रके हाथमें उसका प्रबन्ध देर तक रहा। २५ अकोबर सन् १८८३ से इसके प्रकाशकोंमें पण्डित हर- मुकुन्द शास्त्रीका नाम लिखा जाने लगा। कुछ हो, इसके चलानेवालोंका [ ४०७ ]