पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४२८

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हिन्दी-अखबार करती है। इन सब बातोंका साफ उत्तर लार्ड फडरिनने कुछ नहीं दिया था, पर जो कुछ दिया था वह भी कुछ कम सन्तोषजनक न था। उससे यह बात भलीभांति प्रगट होती है कि उस समय हाकिम लोग प्रजाकी बातें सुनना नापसन्द नहीं करते थे। वरञ्च सुनकर कुछ ध्यान देते थे। ___ उसी संख्यामें उदयपुरके महाराना सज्जनसिंहके २५ वर्षकी उमरमें स्वर्गवासी होनेकी खबर छपी है। उनकी उमर कम थी, पर उनमें अनेक गुण थे। वह गुणी और विद्वानोंके बड़े तरफदार थे। हिन्दीकी उन्नतिकी ओर उनका बड़ा ध्यान था । उदयपुरका “सजनकीर्ति सुधाकर" पत्र उन्हींका स्मारक चिह्न है। ८ जनवरीको संख्यामें प्रयागमें हिन्दी उद्घारिणी प्रतिनिधि मध्य- सभाके स्थापित होनेकी बात छपी है। तब पण्डित हरमुकुन्द शास्त्री इस पत्रके सम्पादक थे। सभा तीन चार दिन तक हुई थी। आगे १५ जनवरीके पत्रमें एक हिन्दी पत्र-सम्पादकोंकी सभा होनेकी खबर है। यह सभा ऊपर लिखी सभामें २६ दिसम्बर १८८४ ईस्वीको हुई थी। इसमें उस समयके १०-१५ हिन्दी समाचार-पत्रोंके सम्पादक उपस्थित थे। सम्पादकोंकी सभा बनी। बाबू रामकृष्ण वर्मा सभा- पति और पं० राधाचरण गोस्वामी मंत्री हुए थे। कई बातें निश्चय की गई थीं। पर यह सब काम एकबार ही होकर रह गया। उसमें जान न पड़ी। उसी संख्यामें भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्रजीके अस्त होनेका शोक-समा- चार है। और उससे अगली संख्यामें उनकी एक जीवनी प्रकाशित हुई है, जिसमें उनकी चार इच्छाओंकी बात लिखी गई है। वह कहा करते “मेरे पास पूर्ववत् धन होता तो चार काम करता (१) श्री ठाकुरजी- को बगीचेमें पधारकर धूम धामसे षटऋतुका मनोरथ करता (२) विला- [ ४११ ]