पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४३६

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हिन्दी-अखबार पण्डित छोटूलाल मिश्र इसके प्रथम सम्पादक और जन्मदाता हैं। सन् १८८३ ई० तक वही इसे चलाते थे। उन्होंने इसकी उन्नतिके लिये बड़ो चेष्टा की, साथ ही सम्पादन भी बहुत अच्छी रीतिसे किया। उनके लिखनेका ढङ्ग बहुत साफ और भाषा सरल थी। उनके बाद सन् १८८४-८५ में पण्डित हरमुकुन्द शास्त्रीजी इसके सम्पादक थे। उन्होंने भी बड़ी योग्यतासे इसका सम्पादन किया। उनके समयमें इस पत्रकी बड़ी प्रशंसा थी। इसके एक बड़े शुभचिन्तक बाबू हनुमानप्रसाद और दूसरे बाबू केदारनाथ थे। पहले सज्जन इसका सम्पादन भी करते थे और दूसरे प्रबन्ध । दोनोंका देहान्त सन् १८८७ ई० में हो गया। ____ इसके चलानेवाले कई सज्जन थे, जिनकी एक कमिटी थी। वह सब इसका काम बेतनखाह करते थे। अपना निजका काम करनेके बाद जो समय बचता था, इसीमें खर्च करते थे। एक ज्ञानवर्द्धिनी सभा थी, जिससे इसको बड़ी सहायता मिलती थी। पण्डित छोटूलालजीने कहा कि यह पत्र हमने केवल दो उद्देश्यों के लिये निकाला। एक हिन्दी भाषा- का प्रचार, दूसरे उन जरूरी बातोंसे लोगोंको कुछ-कुछ जानकर बनाना, जिनका जानना उनके लिये इस जमानेमें बहुत जरूरी है। इन उद्देश्योंमें इस पत्रको बहुत कुछ सफलता हुई और आगे बहुत-कुछ आशा है । इसके परिचालक लोगोंका इससे किसी प्रकारका अपने स्वार्थकी सिद्धिका उद्देश्य न पहले था, न अब है । पण्डित हरमुकुन्दजी इसके पहले तनखाहदार सम्पादक थे। इसके बाद यही सिलसिला चला। १४ अप्रिल सन् १८८७ ई० से पण्डित जगन्नाथ चतुर्वेदी इसके सम्पादक और मैनेजर हुए। १४ दिसम्बर १८८७ ई० से पण्डित अमृतलाल शर्मा हुए। आप १८८६ ई० के अन्त तक रहे। जनवरी १८६० से पण्डित राधाकृष्ण चतुर्वेदी उक्त पद पर हुए, फिर १२ मार्च सन् १८६१ ई० को बाबू रामदास बर्मा उनकी जगह हुए। [ ४१९ ]