पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४४१

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास किया। देशी भाषाके पत्रोंकी स्वाधीनता एकदम छिन गई । उस समय पत्रिका पूरी अंगरेजीमें निकलने लगी। साप्ताहिक अंगरेजी होकर पत्रिकाने जो काम किये और जैसा नाम पाया, वह सबपर विदित है। जब सरकारने "एज आफ कनसेण्ट बिल” प्रजाकी घोर विपक्षताकी परवा न करके भी जारी किया तो अमृतबाजार पत्रिका नित्य अंगरेजीमें निकलने लगी। अंगरेजी भाषाकी एक दैनिक पत्रिका कहलानेका वही हक रखती है। जब दैनिक हुई तो कुछ लोगोंने सलाह दी कि एक लाखको पूंजीके बिना दैनिकपत्र नहीं निकालना चाहिये। पर बिना पूंजीही पत्रिका दैनिक की गई और पहलेही नम्बरमें उसका खर्च निकल आया। इस समय पत्रिका भारत- वर्षके सब स्थानोंमें फैली हुई है। ____ पत्रिकाकी इन बातोंसे भारतमित्रकी कई बातोंका भी कुछ-कुछ मेल है। अधिक मेल उस समयका है। अखबार निकालनेवालोंको उस समय कैसी-कंसी कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता था उसका अनु- मान इन सब बातोंसे बहुत कुछ हो सकता है। तथापि एक बातमें भारतमित्रका बड़ा सौभाग्य है । अदालती झग- डोंमें इसे बहुत कम कष्ट उठाना पड़ा है। एक या दो बार इसे अदालत तक जाना पड़ा है, पर सब काम कुशल पूर्वक निबट गये। इसके चलानेके लिये जो कुछ उत्साह दिखाया गया, उसकी बात कुछ पहली बार कही गई थी। अर्थात् इसके एक मनेजर फुर्सतके समय आप बाजारमें भारत- मित्रकी कापियां लेकर निकला करते थे और दुकान दुकान पर जाकर सुनाते थे । जरूरतके समय इसके मालिकोंने कम्पोज ही नहीं, छापने तकका काम किया है। वह इसलिये नहीं कि छापनेवालों और कम्पोज करनेवालोंका अभाव था, वरश्च इसलिये कि उस समय जरूरत ही वैसा करनेकी थी। [ ४२४ ।