पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४४२

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हिन्दी-अखबार दो बार भारतमित्रको देशी प्रेसकी ओरसे एड्रेस देनेका अवसर हुआ है। एक बार लार्ड रिपनको एड्रेस दिया गया था, जिसकी बात पहले कही जा चुकी है। दूसरी बार महारानीकी हीरा-जुबिलीके समय शिमले जाकर एड्रेस दिया गया था। पिछले एड़े समें भी भारतमित्रको सब देशी अखबारोंके प्रतिनिधि बननेकी इज्जत मिली थी। __“भारतमित्र” कलकत्तेके बड़ेबाजारका पत्र है। इससे बड़ेबाजारकी सेवा वह जन्म दिनसे करता आता है । पानीका जुआ उठवा देनेमें उसने बड़ेबाजारकी अच्छी सेवा की । उसके बाद दूसरा काम रातका भुगतान उठवा देना है। पहले बड़ेबाजारके मारवाड़ियोंमें दस्तूर था कि वह हुण्डियोंके रुपयेका भुगतान रातको किया करते थे। रातको दो दो बजे तक रुपये चुकाने पड़ते थे। इसमें बड़ा कष्ट और अनर्थ होता था। वह चाल आन्दोलन करके उठाई गई। अब सन्ध्याहीको हुण्डियोंका भुगतान हो जाता है। जो लोग देरसे हुण्डी लेकर जायं, उनको अगले दिन रुपया देना पड़ता है। इस बुरी चालके मिटानेके प्रधान उद्योगी कलकत्ता बंगाल बंकके हेड मुंशी पण्डित शिवगोपाल तिवारी हैं। आप भारतमित्रके सदासे शुभचिन्तक हैं। यदि समय अनुकूल होगा तो भारतमित्रको बहुत कुछ उन्नतिकी आशा है। अभी इसको जो कुछ उन्नति हुई है, वह बहुत सामान्य है । आगे बढ़नेके लिये बहुत मैदान पड़ा है। लार्ड कर्जनने ६ तोलेके अख- बारोंका महसूल एक पैसा करके देशो अखबारोंको बहुत कुछ हिम्मत दिलाई है। इससे भारतमित्रको भी बहुत कुछ लाभ उठानेकी आशा है। विचार होता है, भरोसा होता है कि कोई न कोई अच्छी बात होगी। हम आशा करते हैं कि हमारे पाठक हमारी इस रामकहानीसे उत्साहित होंगे। उनको उत्साहित करनेके लियेही हमने यह बातें विशेष कर सुनाई हैं। इससे इन्हें मालूम होगा कि हिन्दीमें कुछ हुआ है [ ४२५ ]