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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४७

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा संवन १६४४ की आश्विनकी पूर्णिमासे बाबू रामदीनसिंहने “हरिश्चन्द्रकला" निकाली। यह स्वर्गीय हरिश्चन्द्रके स्वर्गवासके थोड़ेही दिन पीछे जारी हुई थी। जहां तक हम जानते हैं, उस समय उनकी आर्थिक अवस्था बहुत अच्छी नहीं थी ; तथापि उन्होंने कलाको सिलसिलेवार निकाला । पहले नाटकावली प्रकाशित की, पीछे इतिहामावली । इसी प्रकार ५-६ साल तक उसका सिलसिला चला। बाबू हरिश्चन्द्रक ग्रन्थ ग्याज-खोजकर इसमें निकाले । जिस प्रकार कहा जाता है, कि काशीम हरिश्चन्द्रका जन्म न होता तो आज हिन्दी भापाकी यह उन्नति न होती. उसी प्रकार यह भी कहा जासकता है, कि यदि बाबू रामदीनसिंह न होत तो हरिश्चन्द्रजीकी ग्रन्थावली एमी उत्तम रीतिसे प्रकाशित न होती । इसके साथ-साथ बाबू रामदीनमिहने पण्डित प्रतापनारायण मिश्र, अम्बिकादत्त व्यास, दामोदर शास्त्री, लाल खड्गबहादुर मल्ल आदि मुलेखकोंकी बहुत-सी ऐसी पुस्तक भी छपवाई, जिनकी दम-दस बीमबीस कापियाँ भी न बिकी। । ___ इसके बाद उनका यश बढ़ गया और बिहारके शिक्षा-विभागकी पुस्तकोंके वह एक प्रकार सर्वाधिकारी बन गये। कितनी वङ्गभापाकी पुस्तकें उनके यहाँ आकर हिन्दीमें छपी। बड़ी-बड़ी पुस्तकोंके छापनेका उनका इरादा था। कलकत्त में जब आते थे, सैकड़ों पुस्तकं बटोरके ले जाते थे। पुस्तकं खरीदनेमें उनका रेलका खर्चा घटजाने तकका खयाल नहीं रहता था । मासिकपत्र उन्होंने कितनेही निकाले। 'क्षत्रियपत्रिका' के सिवा 'द्विज-पत्रिका' निकाली थी। पण्डित प्रतापनारायण मिश्रके मासिक पत्र " ब्राह्मण” को एक साल तक पण्डितजीके जीते जी और कुछ दिन तक उनके बाद भी निकालते रहे, पर इन पत्रों से कोई भी चिरस्थायी न हुआ। बाबू साहब उच्च कुलके क्षत्रिय थे। अपने उच्च कुलके होनेका अभि [.. !