पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४८७

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गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना केवल हिन्दीहीके नहीं, अंगरेजी, संस्कृत, बंगला, मराठी आदि भाषाओंके भी आप परम पण्डित हैं और इन सब भाषाओंके व्याकरणसम्मत वाक्योंके कुछ उदाहरण आप दे सकते हैं। "उसकी सीमाका होना" में आपका “का” बेजरूरत है। "उसकी सीमाका होना” या “उसके सीमा होना” से काम निकल सकता है। या यदि आपका व्याकरण 'की' के बाद एक “का” के बिना नहीं मानता तो एक 'कू' आत्मारामकी तरफसे भी सही। जिसमें आप राजी, उसीमें दास आत्माराम भी राजी! इस तरह हिन्दीके पुराने लेखकोंको गन्दी इबारतोंके नमूने दिखाते हुए द्विवेदीजी लिखते हैं- “अब हम अंगरेजी, संस्कृत, बंगला आदि भाषाओंके व्याकरणसम्मत वाक्योंके कुछ उदाहरण देना चाहते हैं। इन उदाहरणोंमें कर्ता, कर्म, क्रिया, लिंग, वचन और विभक्ति आदि सम्बन्धी कोई दोष नहीं है।" इस प्रकार सूचना देकर श्रीमान्ने अंगरेजी, संस्कृत, बंगला, मराठी और अन्तमें हिन्दीसे सचमुच कई एक उदाहरण दे डाले हैं। समझमें नहीं आया कि इस "मारूं घुटना फूटे आंख" से द्विवेदीजीने क्या मतलब निकाला। हिन्दीकी बहसमें दूसरी भाषाओंके पदार्पण करनेका क्या मतलब ? "कहां झगड़ा पिजावेका, निकाला बागका कागज ।” विचारनेसे दोही बात समझमें आती हैं। एक तो यह कि द्विवेदीजी केवल हिन्दीहीके लासानी विद्वान् नहीं, अंगरेजी आदि और कई भाषाओं- के भी सख्त पण्डित हैं—यह बात दुनियाको जना देना था। दूसरे यह कि आपके दिमागमें यह सब भाषाएं अपने-अपने व्याकरण सहित बड़े जोर-शोरसे भरी हुई थीं। एकके निकालते समय औरोंकी भी डाट खुल गई और वह बाहर निकल निकलकर तमाशा देखने लगीं। [ ४७० ]