पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५०

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पंडित गोरीदत्तजी शहरमें नागरी फैलानेवाले पण्डित गौरोदत्तजीकी पूजा करनेको किसका जी न चाहेगा ? आप धनी नहीं हैं, लखपति नहीं हैं, तिमपर भी ३२ हजार रूपये नागरीके काममें आपके परिश्रमसे व्यय हो चुके हैं। मेरठ में देवनागरी पाठशाला आपने जारी कराई। इसमें मिडल तक पढ़ाई होती है । कोई दो मो बालक इसमें पढ़ते हैं। इनके स्कूलके पचामों विद्यार्थी पास होकर नौकरी पागये। मेरठके पुरुषोंहीमें नहीं, स्त्रियों तकमें नागरी फैल गई। किसी चीजके पीछे लगे, तो इन पण्डितजीकी भांति लगे। यह नागरोही लिखते हैं, नागरोहो पढ़ते हैं तथा नागरीहीमें गीत गाते हैं, भजन गाते हैं, गजल बनाते हैं। नागरीहीमें स्वांग तमाशे करते हैं, नाटक खेलते हैं। जब मारा मेरठ-शहर नोचन्दीकी सर करता है, तो यह वहाँ देवनागरीका झण्डा उड़ाते हैं। सारांश यह है कि सोते जागते उठते, बैठते, चलते, फिरते आपको नागरीहीका ध्यान है। नागरीके लिय आपने मेमोरियल आदि भजने में बड़ा परिश्रम किया है । भगवानकी कृपासे नागरोको अदालतों में स्थान मिला है। श्रीमान पश्चिमोत्तर प्रदेशके छोटे लाट मेकडानल्ड साहबक अनुरोधसे बड़े लाट कर्जन महोदयने पश्चिमोत्तर और अवधकी कचहरियोंमें नागरी-प्रचार स्वीकार किया है । पण्डित गौरीदत्तजी धन्य हैं, जिनकी प्यारी आशा उनके जीते जी पूरी हुई । * --भारतमित्र सन् १९०० ई.

  • सन् १९०६ ई० में पण्डित गौरीदत्तजीके देहान्तका सवाद पाकर गुप्तजीने भारतमित्रमें यह टिप्पणी लिखी थी :"मेरठसे एक मित्रके पत्र द्वारा हमें समाचार मिला है कि गत् ८ फरवरी (सन्

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