पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५१

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा १९०६) को पण्डित गौरीदत्तजीका देहान्त होगया। यह बड़े नागरी हितैषी पुरुष थे। मेरठ जैसी ऊसर भूमिमें नागरीका पौधा इन्होंने लगाया था। वहाँ खाली उर्दूहीकी जयजयकार थी, पर अब वहाँ नागरी जाननेवाले भी बहुत होगये। पण्डित गौरीदत्त जबतक जीते रहे, नागरीकी सेवा करते रहे। हरघड़ी नागरीकी धुन थी। राम-राम, और नमस्कारकी जगह भी कहते थे, कि नागरीकी जय । मेरठका देवनागरी स्कूल आपहीका बनाया हुआ है । वह उनके शोकमें एक दिन बन्द रहा। बड़े निरभिमान पुरुष थे। स्वर्गीय पण्डित प्रतापनारायण मिश्र इनका एक गीत गागाकर खुब आनन्द लिया करते और खूब हँसा करते । गीतका आरंभ इस प्रकार है :- भजु गोविन्दं हरे हरे, भाई भजु गोविन्दं हरे हरे । देवनागरी हित कुछ धन दो, दूध न देगा धरे धरे । इन्होंने मेरठसे देवनागरी गजट जारी किया था। अफसोस है कि अब वह नहीं है। एक कोष बना गये हैं, जिसका नाम गौरी-नागरी कोष है । बहुत-सी नागरीकी छोटी-छोटी किताबें लिख गये हैं, यहाँ तक कि एक नागरीका ताश भो बना गये हैं।"