पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५२६

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हिन्दीमें आलोचना अबस तुम अपना रुकावटसे मुँह बनाते हो। वह आई लब पे हंसी देखो मुसकराते हो। नेक नजर और नेकनीयती "जिस कायामें घुसकर हमारे शर समालोचक वाण-वर्षा कर रहे हैं उमकी शुरूहीसे सरस्वती पर नेक नजर रही है। आक्रमण पर आक्र- मण उस पर होते आये हैं। पर हमने कभी उनकी तरफ ध्यान देनेकी जरूरत नहीं समझी। नहीं मालूम क्यों कुछ लोगोंकी आंख में सरस्वती कोटे-सी चुभती है।" (सरस्वती, फरवरी १६०६ पृष्ठ ७०) ___ "क्योंकि नेक-नीयतीके सव काम छिपकर ही किये जाते हैं। आपकी बड़ी नेकनीयती नई नहीं, ६ वर्षकी पुरानी है। जब उसका वेग बढ़ जाता है तब वह समय-समय पर कभी लेख, कभी नोट, कभी तस्वीर आदिक रूपमें बाहर निकलकर आईनेके समान आपके साफ दिलको हल्का कर दिया करती है ।" (सरस्वती, फरवरी १६०६. पृष्ठ ८०) ____ इन वाक्योंसे द्विवेदीजी यह स्पष्ट करना चाहते हैं, कि आपने जो लख, भाषा और व्याकरण पर लिखा था, वह बहुत जरूरी था। पर उसके उत्तरमें आत्मारामने जो कुछ लिखा उसमें ६ साल पहलेकी दुश्मनीका बदला निकाला गया है। आत्माराम कल्पित नाम है। भारतमित्र-सम्पादकने स्वयं वह सब लेख आत्माराम बनकर लिखे । सरस्वती उसकी आंखोंमें चुभती है। वह उससे बराबर छेड़-छाड़ किया करता है। पर हम कहते हैं कि यह द्विवेदीजीका बहम है । इसकी दवा लुकमानके पास भी नहीं है। जो 'भारतमित्र' सम्पादक [ ५०२ ]