पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५३

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा थोड़ेही कालमें उन्होंने दिखा दिया, कि वह उत्तम पुस्तकं लिख सकते हैं, सुन्दर कविता बना सकते हैं और अच्छे अच्छे युक्ति-पूर्ण लेख लिख सकते हैं । कड़ी समालोचना लिखनेमें वह बड़ेही कुशल-हस्त थे । अनि तीब्र और जहरमें बुझे लेख लिखनेपर भी वह हँसीके लेख लिखकर पाठकोंके चेहरेपर खुशी लासकते थे। लिग्वनेमें वह बड़े ही निडर और निर्भीक थे । हिन्दो इतनी अच्छी लिखते थे कि दूसरा कोई उनके जोड़का लिखनेवाला नहीं दिखाई देना। माधवप्रसादजीने उमर कुछ न पाई, पर इस थोड़ीही उमग्में उन्होंने भारतवर्षके सब प्रसिद्ध प्रसिद्ध स्थानोंका चक्कर लगा डाला था। बहुत कुछ अनुभव प्राप्त किया था। संस्कृत पुस्तकों और अपने शास्त्रोंकी ग्योजमें भी उन्होंने बड़ा मन लगाया था और कुछ काम भी किया था। बड़े इरादे और उत्माहके आदमी थे। पर हाय ! कुछ न होने पाया। असमय मृत्युने सब जहांका तहां रखवा दिया। · भारतमित्र-सम्पादकसे उनका बड़ा प्रेम था । इतना प्रेम कि, कदाचित ही कभी दूसरे किसीसे उतना हुआ हो । बातें करते करते दिन बीत जाते थे, रात ढल जाती थी, पर बात पूरी न होती थीं। गत दो सालसे वह नाराज थे । नाराजी मिटानेकी चेष्टा भी कई बार की गई, पर न मिटी । यही खयाल था, कि कभी न कभी मिट जायगी। पर मौतने आकर वह आशा धूलमें मिला दी। इतना अवसर भी न दिया, कि एक बार उनको फिर प्रसन्न कर लेते ! ___ उनका और भारतमित्र-सम्पादका एक ही देश है। बहुत पुराना माथ था। इससे उनके साथ ठीक स्वजनोंकासा नाता था। इस नाराजगीके दिनों में कभी कभी मिला करते तो कहते-"बस, अब यही बाकी है, कि तू मर जाय तो एक बार तूझे खूब रोलें और हम मर गये तो हम जानते हैं कि पीछे तू रोवेगा ।" आज पहलो तो नहीं, पिछली