पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५३८

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हिन्दीमें आलोचना जो कुछ लिखा, वह पत्तनलालजीका बदला लेनेके लिये लिखा। पत्तनलालकी कथा सुनकर पाठक हंस पड़गे। पत्तनलाल पटना-निवासी एक सज्जन हैं। उन दिनों उन्होंने दो कविताएं ऐसी लिखी थीं, जो पण्डित श्रीधरजी पाठककी दो कविताओं का अदल-बदल जान पड़ती थीं। सबसे प्रथम हमनेही उन पुस्तकों की आलोचना करते हुए पत्तनलालके इस कामकी निन्दा की थी। पीछे स्वयं पण्डित श्रीधरजीने भी उसपर एक लेग्व लिखा। तब हमारे द्विवेदीजीको भी जोश आया। आपने भी एक लेख लिग्वकर पत्तनलालको फटकारा। पर रामभजन रामका मसखरापन देखिये कि उनने न तो भारतमित्र-सम्पादकको कुछ कहा और न श्रीधरजीका सामना किया, अपने मित्र पत्तनलालका बदला लनेके लिये सीधा द्विवेदोजोसे लड़ पड़ा ! हम आशा करते कि अब तो सब लोगोंको इस बातक समझने में कुछ दिक्कत न रह जायगी, कि जो आदमी द्विवेदीजीका मुकाबिला करता है, उससे कुछ न कुछ लाग-डाट बताना आपकी पुरानी आदत है और उसके नामको कल्पित समझना भी आपको पुरानी समझ है। जिस समय रामभजराम और द्विवेदीजीकी यह लिखा-पढ़ी हो रही थी, उस समय अचानक द्विवेदीजीकी एक निजकी चिट्ठी भारतमित्र-सम्पादकके नाम आई । उसका भाव यह था कि पण्डित श्रीधर पाठक कहते हैं कि 'खिलौना' आपने बनाया है। यदि मैं यह जानता कि वह आपका बनाया हुआ है, तो उसकी कभी वैसी आलोचना न करता। पर आपने यह बात मुझे न बताकर मेरी आलोचनाकी कड़ी आलोचना लिखी, यह मित्रताके व्यवहार- से दूर बात है। यहांसे उत्तरमें लिखा गया, कि आपकी कृपाका धन्यवाद है । पर इस बातसे सहमत नहीं हो सकते कि मित्रांकी पुस्तकोंकी आलोचना और प्रकार हो और जो मित्र नहीं हैं, उनकी और प्रकार। आलोचना न्यायसे होना चाहिये उसमें मित्रताकी जरूरत [ ५२१ ]