पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५५५

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गुप्त-निबन्धावली मालोचना-अत्यालोचन तीन दमड़ीकी दूकान रखनेवाले किसी बनिये बकालका जगत् सेठ राथ्स चाइल्ड या कारनेगीसे उनकी सम्पत्तिका हिसाब पूछना है।" अप्रियवाद "हां अगर हम हरियानेके देहाती होते तो बात दूसरी थी। x x न हम पंजाबके देहाती हैं, और न हम महा महादेहाती होकर नागरिक बनने और जुबांदानीका लोलक लटकानेका दावाही रखते हैं, फिर हम आलोचना कर कैसे सकते हैं ?" “यहाँ तक लिख चुकने पर हमें खयाल हुआ कि बाबू हरिश्चन्द्रके पूर्वोक्त वाक्य हमने लिख तो दिये, पर हमारे समालोचक चक्रचूड़ामणि उनकी अनस्थिरताको एक चुटकीमें उड़ा दंगे। वे फौरन ही कह दंगे कि देहली और लखनऊका बोल-चालही ऐसा है और काशीक पुराने लेखक घरहीमें बैठे-बैठे एक जुबानसे देहली. लखनऊ और काशीकी बोलियां एकही साथ बोलते थे।" हठ हठमें भी द्विवेदीजी अपने सानी आप हैं। आप कहते हैं “हिन्दीके शब्द विचारमें हमारी समझमें यथासम्भव संस्कृत-व्याकरणसे सहा- यता लेनी चाहिये । संस्कृत व्याकरणकेसमान अच्छा और कोई व्याकरण दुनिया में नहीं।" ___ इतने पर भी आपकी- 'अनस्थिरता” संस्कृत कायदे पर नहीं चल सकती। उसके लिये आप हिन्दीमेंसे 'अन' लाना चाहते हैं और 'अनमिल,' 'अनदेखी' 'अनसुनी' की मिसाल देते हैं । साथ-साथ उसको संस्कृतसे शुद्ध बनानेमें भी त्रुटि नहीं करते हैं। आप लिखते हैं..."अभी दिसम्बरके अखीरमें जब हम बनारसमें थे, एक दिन नागपुरके पं० माधवराम सप्रे बी० ए० और संस्कृत चन्द्रिकाके सम्पादक अप्पा शास्त्री [ ५३८ ]