पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५५७

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गुप्त-निषन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना थे ? उनकी इतनी भारी भूल आपहीकी समझमें आई ? आप 'भारत- मित्र'से एक वाक्य नकल करते हैं-"इन सब दोषोंके दूर होनेको कोई उपाय नहीं ! है।” इस वाक्यमें श्रीमान द्विवेदीजी को' की भूल दिखाते हैं। भारतमित्रके सम्पादकको 'को' और 'का' का भेद आपकी समझमें मालूम नहीं । देहातसे जो लड़का किसी स्कूलमें पढ़ने आता है वह 'को' और 'का' की भूल बता सकता है, पर भारतमित्रका सम्पादक इतनी भारी भूलको दूसरेके बताये बिना नहीं समझ सकता। द्विवेदीजीकी- सी लज्जा द्विवेदीजीकेही पास है ! आप धन्य हैं ! आपकी समझ धन्य है ! आप उस वाक्यके 'को' को कम्पोजिटरको भूल मानने पर राजी नहीं ! ___ आपकी खुशनसीबी है कि इण्डियन प्रस बहुत उत्तम छापता है, बहुत शुद्ध छापता है। नहीं तो प्रूफकी भूलोंके कितनेही हार, फलोंके हारोंकी भांति आपको अपने गलेमें पहनने पड़ते। इतने पर भी भूल आपकी 'सरस्वती'में हो जाती हैं। फरवरीकी संख्याके ६१ व पृष्ठपर “समामोचक" छपा है। अवश्यही यह प्रफकी भूल है। ६२ वें पृष्ठमें 'करत समय' छपा है, जरूर वह 'करते समय' है। आपने एक जगह मरजको 'मर्ज' लिखा है। यह बेशक आपकी भूल है, प्रूफकी नहीं। जिक्रको ‘जिकर' लिखा है, यह भी आपहीकी भूल है। इसमें पहली भूल पक्की भूल है और दूसरी कयो, क्योंकि हिन्दोवाले जिक्रको ‘जिकर' लिख सकते हैं। भाषाके इस प्रकारके नमूने द्विवेदीजीके फरवरीवाले लेख में जहां-तहां मौजूद हैं। सबके उद्धृत करनेकी गुञ्जाइश नहीं। जो अंश लिख दिये हैं, वही द्विवेदीजीके लिये और सबके लिये काफी हैं। इन 'चिन्हों के लिये द्विवेदीजीने संस्कृतका एक श्लोक उद्धृत किया था। हम उसको द्विवेदीजी जैसे योग्य पुरुषपर घटाना नहीं चाहते । वरश्च कहना चाहते [ ५४० ]