पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावती आलोचना-प्रत्यालोचना इस सप्ताह बङ्गाली लेखकोंकी बाबत हमारे पास बहुत-सी चिट्ठियां आई हैं, जिनका मतलब यही है कि बंगाली लेखक स्वयं दूसरोंके लेख बेनाम-बेनिशान अपने कर लेते हैं, उनमें से कुछके उदाहरण भी हम देते हैं। ____ सबसे प्रसिद्ध लेखक उपन्यास लिखनेवालोंमें बाबू बङ्किमचन्द्र चटर्जी हुए हैं। उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'दुर्गेशनन्दिनी' पर इलजाम लगा था कि वह फ्रेंच उपन्यासकी छाया है। बतिम बाबू कहा करते कि 'दुगशनन्दिनी' तरजुमा या छाया नहीं, उन्हींके मगजसे निकली है। जब उनको वह फ्रेंच उपन्यास दिखाया गया, तो उन्होंने कहा कि मैंने इसको कभी नहीं देखा। मेरा खयाल मेरेही मगजसे निकला हुआ है। बकिम बाबूके उपन्यासोंमें हम कई बातं और भी ऐसो दिखावेंगे, जो दूसरोंको हैं और बङ्किम बाबूको समझी जाती हैं। बङ्किमके उपन्यासोंमें जो विचार हैं, उनमेंसे वहुत ऐसे हैं, जो बङ्गदेश या भारत- वर्षके नहीं हैं, एकदम विदेशी वस्तु हैं। बाब दीनेन्द्रकुमार राय 'वसुमती' के सम्पादक हैं। यह बहुत कुछ अंगरेजीसे तरजुमा करते हैं और पता निशान देनेमें हिचकते हैं। उन्होंने “अजयसिंहेर कुठी” नामको एक पोथी बंगलामें लिखी है। उसमें लिखा है कि फ्रेंच डिटेकिन कहानोके अवलम्बनसे लिखी गई है। पर न ग्रन्थकर्ताका नाम लिखा है, न पुस्तकका नाम लिखा है और अनुमति आपने किससे ली है, सो आपही जानते होंगे। जहांतक हम जानते हैं, वह फ्रेंच भाषा नहीं पढ़े हैं, इससे अवश्यही उनकी कहानी कंच होगी, तो उन्होंने अंगरेजी अनुवादसे बंगला की होगी। पर यह नहीं लिखा कि फ्रेंचसे उन्होंने बंगला कैसे की। ____ उसी 'बसुमती' आफिसके उपेन्द्रनाथ मुकर्जीने ‘सन्तप्त शैतान' नामकी एक पुस्तक निकाली है, जो एक अंगरेजी पुस्तकका तरजुमा है।