पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रीराम स्तोत्र अब आये तुम्हरी सरन “हारेके हरिनाम ।" साख सुनी रघुवंशमनि “निबलके बल राम ।।" जब लौं निजबल-मद रह्यौ सस्यो न गजको काम । निर्बल है जब हरि भज्यो धाये आधे नाम ।। छलबल करत कपीसको मिट्यो न नाथ कलेस । निबल है जब पद गहे भयो बालिको सेस ।। दीन सुदामाके किये छनमहँ कञ्चन धाम । दसरथ गति भई गीधकी जपत नाथको नाम ।। दीन होय आयो सरन खाय भ्रातकरि लात । कियो लङ्कपति अङ्क भरि रिपु दसमुखको भ्रात ।। पतिगन गुरुजन सब रहे अरु भरपूर समाज । नाथ न कोऊ रख सक्यो द्रुपदसुता करि लाज ।। आरत है जब तुम भजे हे कृपालु रघुवीर । दुःशासन निर्बल कियो ढाई गजके चीर ।। जपबल तपबल बाहुबल चौथो बल है दाम । हमरे बल एको नहीं पाहि पाहि श्रीराम ।। अपने बल हम हाथकी रोटी सकत न राख । नाथ बहुरि कैसे भरै मिथ्या बल करि साख ।। सेल गई बरछी गई गये तीर तरवार । घड़ी छड़ी चसमा भये छत्रिनके हथियार ।। जो लिखते अरि-हीय पै सदा सेलके अङ्क । झपत नैन तिन सुतनके कटत कलमको डङ्क ।। । ५८१ ।