पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६१४

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देव-देवी स्तुति अब वही भाव जीवित करन, आई हा करुणामयी। पुनि दया दृष्टिसों करहुगी, भारत कहं त्रिभुवनजयी। (१२) जय ति सिहवाहिनी जयति जय भारत माता । जय असुरन दल दलनिजयति जय त्रिभुवन त्राता ।। संग सरस्वति अझ कमला, सोभा बाढ़ी अति । चारहु ओर गगन करि सेना, सुरसेनापति ।। अब जननी याही रूपसों, सदा वास भारत करो। धनधान्य अनन्द बढ़ायक, दरिद सोक संसय हरो॥ -हिन्दी-बङ्गवासी, २३ सितम्बर सन् १८९५ ई० आगवनी। (१) इते दिवसपर का सुध आई माय ? भारत-भवनहिं दरस दिखाये आय ।। लेन दुखित सन्तानहिं, गोद पसारिक। आई हो सुख देन, कलेश निवारिक ।। वह तेरी सन्तान देख, तोहि धावती। "मा, मा” करती मा तेरे, ढिग आवती ॥ [ ५९७ ]