पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६१८

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देव-देवी स्तुति माय छाड़ि कहुं और ठिकानो, नाहिं रे ।। छोड़ो ममता माया या संसारकी। सरन गहहु सब मात दया-आगार की ।। (१३) बिन बल जे तन तम्वर सूख झुरान । आज अचानक सो कंसे हरियान ।। जिन नैननकी दीठि गई, अरु तम छयो। कैसे उनमैं आज जगत, उज्ज्वल भयो ? जिन श्रवननकी श्रवन शक्ति, अरु सुख भग्यो। उनमहं कैसे आज अमिय, बरसन लग्यो ।। (१४) मन कहं नित घेरे रहत विषाद । कैसे वामैं बाजे आनंद नाद ? नित रोवत जो प्राण हंसी, वापै छई । कैसे सगरी वस्तु आज दीखत नई ।। सो दिन, सोही रात कौन कीनो नयो । जान्यो-मात तुम्हार आज अगवन भयो ।। -हिन्दी बवासी, २३ सितम्बर १८९५ ई. जय दुर्ग जाग जाग जगदम्ब मात यह नींद कहांकी । कस दीन्हीं बिसराय बान सुतवत्सल मांकी । एक पूतकी मात नींद भर कबहुं न सोवत । तीसकोटि तब दीन हीन सुत तव मुख जोवत । [ ६०१ ]