पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा ऐसा उपन्यास वह लिख गये हैं, कि यदि वह पूरा होजाता तो बङ्गभाषा- में लासानी होता। सबसे अन्तमें गजलक्ष्मी नामका एक और उत्तम उपन्यास वह लिग्बगये हैं। हंसीके लेब लिखने में भी वह अपने ढंगके एकही थे। उनके हर उपन्यास और हर लेग्बमें वही झलक होती है। पर जहाँ गम्भीर बनते थे, वहाँ भी गजब करते थे । 'मोडलभगिनी' उपन्यासके नायक ब्राह्मण देवताका चित्र खंचने में गम्भीरताकी मूर्ति खड़ी करदी है। ___विज्ञापन लिग्वनेमें बड़ही वीर थे । बंगला और हिन्दीमें विज्ञा- पनोंका नया ढंग उन्हींक आविष्कृत ढङ्गकी नकल है। अपनी इस अपूर्व शक्तिको उन्होंने बी. बसुका मालमा और विजयबटिका बेचनेमें खर्च किया और उमसे खूब रूपये पढ़ा किये। उनका चलाया हुआ यह कारोबार खासे नफका है। उनके हाथसे बङ्गभाषाके माहित्यकी अच्छी सेवा हुई, तिसपर भी अपनी बनाई पुस्तकोंपर वह अपना नाम न देते थे। अब उनके शरीगन्तके बाद यह बात प्रचार की जाती है, कि वह उपन्यास उनके लिखे हुए थे। उनकी अंग्रेजी-शिक्षा बहुत माधारण थी, तथापि अपने बुद्धिबलसे उन्होंने अंग्रेजीसे बहुत कुछ काम लिया। अंग्रेजी दैनिक पत्र जारी किया, अंग्रेजीकी अच्छी अच्छी भारतवासियोंके कामकी किताबें छापकर मस्ते दामोंपर बिकवाई। बङ्गभापाके लिखनेकी उनकी चलाई नई चालका खूब अनुकरण हुआ। योगेन्द्र बाबूका शरीर बहुत भारी था । मामूली कुर्सीपर बैठ नहीं सकते थे। रङ्ग अत्यन्त काला था। भारी होनेसे चल-फिर बहुत- हो कम सकते थे। आवाज माफ न थी। बहुत रुक रुककर बात करते थे। उनकी शकल देखकर कोई नहीं कह सकता था, कि यह बड़े सिक और नामी सुलेखक हैं। उनकी रसिकता इस दर्जेतक थी, कि [ ४६ ]