पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६४७

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गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता - - इस प्रकारसे पोतके कालस मुंहको हाथ दिखाते हो। खुदगरजीके मारे अगली पिछली इज्जत खोते हो, मुसलमान-कुलका गौरव औ देशका नाम डबोते हो। फिरसे अब शैतान आनकर सिरपर तेरे हुआ सवार, (४) मुसलमान भाइयोंको अपने नहीं तो क्यों करते यों ख्वार । जाति तुम्हारी ऋणकी मारी सारी डूबी जाती है, तिस पर भी अफसोस तुम्हें दिन रात खुशामद भाती है। एक पास हो गया है ऋणका आफत आनेवाली है, ऋणी नौकरी पेशोंके अब पड़ गई देखा भाली है। मुसलमान ही अधिक ऋणी हैं निरधनताके मारे हैं, मुंहसे कहनेको जो बाबा तुमको अति ही प्यारे हैं। वह कानूनन अपने पदसे शीघ्र उतारे जावंगे, कर्ज एककी कठिन खड्गसे निश्चय मारे जावंगे। अय ! नामीनेशनके लोलुप ! इधर तुम्हारा ध्यान भी है, कब यह नियम चला कब हुआ उपस्थित इसका ज्ञान भी है ? किस किसने इस बिलको रोका किसने वाद विवाद किया, किसने किया विरोध और किस किसने इसका पक्ष लिया ? आप किया प्रस्ताव समर्थन आप ही उसको पास किया, हां हुजूर वालोंने देकर वोट खरा उपहास किया ! चुने हुए मेम्बर होते तो ऐसा कब होने पाता, इस प्रकार कौंसिलमें कब नानीजीका घर बन जाता। अब भी क्या इसलामके हामी बनके डीगें मारोगे, पक्षपातके मेम्बर पर चढ़ झूठी बांग पुकारोगे ? ( ४ ) सैयद साहब कुरानमें लिखे हुए शैतानको नहीं मानते। [ ६३० ]